29.4.20

अहसास आजदी का !

कोरोना माहमारी , जिसे  चीनी वाइरस भी बोला जाने लगा है,  के  कहर के चलते  लगभग 8 अरब (7.70 अरब)  की  दुनिया में  2 लाख से अधिक लोग अकाल मृत्यु की गोद में  समा चुके हैं। रोज की तरह ही  आज  29 April ,20  को भी  न्यूज़ पेपर्स  में  मेरी  नजर  मौतों की इन्हीं आंकड़ों पर पडी। 
संपन्न व् अन्य देशों  में जैसे अमेरिका- 57,862 , इटली- 27,359 , स्पेन-23,822 , फ़्रांस -23,293, ब्रिटेन-21,092 , बेल्जियम-7,331 , ईरान-5,877, जर्मनी- 6,174 , ब्राजील- 4,603  चीन- 4,633 व् भारत में आरोग्य सेतुनुसार-1,007  लोग इस वैश्विक माहमारी के कारण असमय मृत्यु का शिकार बन चुके है।  मौत के बढ़ते आंकड़ों को पढ़कर आत्मा काँप जाती है।    ईश्वर असमय कालग्रास बनी आत्माओं को शांति प्रदान करे !
22 March 20 से लॉकडाउन-2 , भी 3 May 20 को समाप्त होने में बस  कुछ ही दिन बाकी है। परन्तु अभी भी इस माहमारी का हल सोशल- डिस्टेंसिंग व् लॉकडाउन के सिवा कुछ नजर नहीं आ रहा । 
आज मीडिया में  खबर चल  रही है कि  पंजाब  सरकार ने  लॉकडाउन-3  की घोषणा कर, दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया है। 
लॉकडाउन ने  घरों में  लोगों को दार्शमिक बना दिया है।   ग्रहणी (होम मेकर्स) का महत्व जो पहले से ही है,  उसे   लॉकडाउन  ने  सातवें आसमान में पहुंचा दिया है। सनातनी परम्परा (हिन्दू धर्म) में  ग्रहणी को  लक्ष्मी, अन्नपूर्णा कहा गया है,  इसका अनुभव सचमुच  लॉकडाउन में घरों में कैद होकर सहज ही अनुभव  किया जा सकता है।  घर का पूरा भार  आज  भारत की इसी कुशल  ग्रहणी के सबल कन्धों पर है। जिसका योगदान किसी योद्धा से कम नहीं।  
लॉकडाउन ने  आजादी को लेकर सोचने का एक नया नजरिया दिया है।  सचमुच  1947 की आजादी  ही वो आजादी है जो एक लोक  कल्याणकारी राज्य  (देश ) में   हमें देश में कहीं भी  घूमने , रहने काम करने , बोलने जैसी आजादी देती है  विपदा के समय देश की कल्याणकारी सरकार  नागरिकों की रक्षा के लिए जी जान से जुट जाती है   जैसा कि अभी कोरोना माहमारी के समय देखने मिल  रहा है Ɩ
बस देश को   कोरोना से मुकित   व् वही सुनहरी आजादी चाहिए Ɩ काश ऐसा जल्दी हो ! जब हम  लॉकडाउन से बाहर आकर उसी  आजादी का जी भर कर  जश्म मना सकें। तथास्तु !

जय हिन्द जय भारत 

21.4.20

लॉकडाउन-किरण उम्मीद की !

वैश्विक  माहमारी कोरोना के कारण  देश भर में 3 May, 20 लॉकडाउन  के कारण  जनजीवन थम सा गया है।  प्रधानमंत्री जी  की अपील पर 22 March ,20 के जनता कर्फ्यू  से  ही सभी 130 करोड़ भारतीय, देश-दुनियाजहां के दुश्मन कोरोना जिसकी   प्रकृति परमाणु  बम फटने जैसी प्रतीत  होती है, से मुकाबला करने के लिए सोशल डिस्टेंस अपनाकर लॉकडाउन का पालन करते हुए बंकर रूपी  घरों में  रहकर कोरोना योद्धाओं के साथ  लेफ्ट-राइट कदमताल मिलाते हुए  बहादुरी से मुकाबला कर रहें है।

हमने अन्य देशों जैसे  इटली, स्पेन, अमेरिका  आदि की गलती से सीख ली जहाँ मौत का एक बड़ा आंकड़ा है।
माननीय  PM ने देश के आर्थिक हानि की परवाह न करते हुए, देश की अमूल्य नागरिक पूंजी को बचाने के लिए सारी ताकत झोक दी है , कारण किसी देश के नागरिक ही उसकी सभी बड़ी पूंजी/दौलत होती है  

 जो हमारे लिए बड़े ही गौरव की बात है।

लॉकडाउन लॉकडाउन  से भले ही आर्थिक नुकसान  हो परन्तु  हमारे लिए एक यह एक उम्मीद के साथ -साथ  अवसर  भी है   उम्मीद की एक किरण है जिसमें धैर्य( धीरज ) ही हमाराबल है Ɩ रामचरित मानस में ठीक ही  लिखा है   -
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
विश्व व्यापी इस संकट में वैदिक सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) जिसकी मूल भावना ही  वसुधैव कुटुम्बकम्  है , विश्व में शांति की कामना करें  - 
ॐ द्यौ: शान्ति रन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्ति राप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।
वनस्पतय: शान्ति र्विश्वे देवा: शान्ति र्ब्रह्म शान्ति:
सर्वँ शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
(
आशय है  - हे परमात्माशांति कीजिये, वायु में शांति हो ! अंतरिक्ष में शांति हो ! पृथ्वी परशांति हों ! जल में शांति ! औषध में शांति हो! वनस्पतियों में शांति हो ! विश्व में शांति हो ! सभी देवतागणों में शांति हो ! ब्रह्म में शांति हो ! सब में शांति हो ! चारों और शांति हो ! हे परमपिता परमेश्वर शांति हो ! शांति हो ! शांति हो ! )
आइये आशावादी बन  प्रार्थना करें -
धर्म की-    जय हो !
अधर्म का -   नाश हो !
प्राणियों में -   सद्भावना हो !
विश्व का - कल्याण हो !
जय हिन्द !जय भारत !


3.4.20

भाषा में जुड़ते नये शब्द

कोरोना जैसी भयंकर विश्वव्यापी माहमारी ने  देश-जहान में देशों की सीमा व् भाषा की दीवार को  तोड़ दिया है। हिन्दुस्तान, भारतीय उपमहाद्वीप में  बोली  व् समझी जाने  वाली हिन्दुस्तानी  भाषा- हिंदी  भी  इससे अछूती नही रही।  
वैसे  तो हिंदी में  देश-विदेश की 18 से अधिक भाषा के शब्द  रच-बस  गए है, यही कारण  है कि आज हिंदी भारतीय उपमहाद्वीप  में एक सम्पर्क  भाषा के  रूप में  उभरी हैसात समुन्द्र पार विदेशों में भी इसकी एक पहचान है।  प्रत्येक वर्ष हिंदी के  पॉपुलर शब्द ऑक्सफ़ोर्ड  की डिस्कनरी में  अंग्रेजी  की शोभा बढ़ा,  इंगिलश को मजबूत  बना  रहें है।
वैसे हिंदी भाषा बोलने  व् समझने  वालों को आम बोल-चाल व् न्यूज पेपर्स की  हिंदी धड़ल्ले से समझ में आती है, परंन्तु वहीं  इंग्लिश से हिंदी में “सरकारी ट्रान्सलेटेटिड”  भाषा को समझने में अच्छों-अच्छों के छक्के छूट जाते है।  सरकारी  फार्मों की  हिंदी को सही  माइनों  में  आम-जन  की हिंदी तो  कतई नहीं कहा जा सकता।  उसे महज द्विवभाषा की खानापूर्ति कहा जाए तो गलत नहीं होगा।  
 
होना तो यह चाहिए था जो शब्द बोलचाल में आम लोगों के शब्द  व् टेक्नीकल शब्द  जो हिंदी भाषा का  हिस्सा बन गए  है उन्हें सरकारी  भाषा में प्रयोग किया जाता तो स्तिथि  कुछ अलग होती। उदाहरण के लिए   जब संसद में हिंदी में बहस होती है या पं नरेंद्र मोदी  अपनी बात कहते है तो वह भारत ही नहीं पूरे  भारतीय महाद्वीप के लोगों तक आसानी से पहुंच जाती है। 
महामारी के कारण  आज कुछ शब्द आम व् खास लोगों की जुबान से नित्य बोले, सुने व् न्यूज पेपर्स में लिखे जाते है जिसे सभी  बखूबी समझते है  जैसे -सोशल डिस्टेंशिंग ( एक दूसरे से सामाजिक दूरी ) क्वारंटीन ( एकांत वाश/ एकांत में रखना/रहना ), कोरोना पॉजिटिव/निगेटिव। आदि आदि।  तो फिर हिंदी में इन्हें ज्यों का त्यों क्यों न रखा जाए Ɩ
  भाषा में समय-समय पर देश काल,परिस्तिथि के अनुसार परिवर्तन होते  रहते है। फिर  बदलाव ही प्रकृति का नियम है। चाहे वह धर्म हो या भाषा Ɩ इसी से भाषा, देश व् धर्म  समृद्ध  बनते है। भला इस इक्कीशवीं से  चौदहवीं सदी  या उससे पीछे कैसे लौटा जा सकता है Ɩ



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