21.9.19

चालान की बीमा पालिसी ?


देश भर में चालान को लेकर चर्चा है !  चालान भी अजीबोगरीब तरह के है। विदेशों की तर्ज पर  भारत में  नए मोटर  व्हीकल एक्ट को लेकर आने वाले  भी शायद इस तरह के चालानों को सुनकर दातों तले उंगुली  दबाते हो   लेकिन जनहित में चुप्पी जरूरी है।यही सोच कर सभी मुंह में दही जमा कर बैठे है।  
तरह तरह के चालानों में  बैलगाड़ी का चालान बस,कार,ऑटो चालक का हेलमेट न लगाने पर चालान ! ऑटो चालक का सीट बेल्ट न लगाने का  चालान।  आदि आदि कुछ इसी तरह के किस्में है चालानों की। शायद यही देखकर चुनावी  राज्यों में नए मोटर व्हीकल को लागू ही नहीं किया गया। 
  चालानों के अनेक प्रकार को देख इसे नए  एक्ट के महाभारत के चक्रव्यूह युद्ध की संज्ञा दी जाए तो अतिश्योकित न  होगी। जिसमें शत्रु को अनेकों दवरों में फंसाकर घेर कर पंगु बना दिया जाता  है। आइये ! इसको परिभाषित करें : -
"  नए मोटर व्हीकल एक्ट में “चालान”  महाभारत  के  चक्रव्यूह युद्ध की भांति है,  जिसमें  शत्रु को द्वारों की भूल भुलैया में फंसाकर किसी भी तरह से अर्थात बाई हुक या बाई क्रुक”  (By Hook Or By Crook) अभिमन्यु  समान वाहन चालक को जुर्माने का बलिदान देना ही होता है।"
1- 
कभी सड़क नियम "सही" से  न पालन करने पर । "सही"का मूल्यांकन ट्रेफिक पुलिस के विवेक व् नियत पर निर्भर करता है।
2- 
कभी वाहन  के अनेकों दस्तावेजों में से किसी की कमी होने पर । हर दस्तावेज की कमी  पर जुर्माना  राशि  अलग-अलग जोड़ी जाती है  जो वाहन की कुल कीमत से अधिक भी हो सकती है।
3- 
कभी वर्दीकभी चप्पल पहनने पर  तो कभी वाद विवाद के  किन्तु  परन्तु पर  
अतः उपरोक्त आधार पर यह निर्विवाद सत्य व् सर्विदित है कि  एक न एक दिन चालान होना ही है  आखिर बकरे की  मां कब तक खैर मनाएगी , इस अनहोनी को मौत की तरह किसी प्रकार से टाला नहीं जा सकता Ɩ यही अटल सत्य है। 
अतः जनहित,सरकार हित व्  देश व् परिवार के आर्थिक  हित  में  बीमा कंपनियों को  हेल्थदुर्घटनामृत्यु  आदि  बीमा पॉलिसी की तरह  “ चालान की  बीमा  पालिसी” निकालनी  चाहिए।
 ताकि किसी भी परिवार पर  इस अचानक  असमय आने वाली असहनीय विपदा का बोझ कम किया जा सके 
 
नए मोटर व्हीकल एक्ट से बीमा कम्पनिंयों  को इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाना  चाहिए Ɩ उन्हें  बीमा व्यवसाय में चालान जैसे प्रोडक्ट को लांच  करना चाहिए 
  बैंकों में  भी  बचत खातों पर  12 रूपये वार्षिक क़िस्त पर दो लाख तक का  दुर्घटना बीमा की  तरह,  चालान  बीमा शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ाना  चाहिए। 
 जब  एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा  खुलता है।  अतः नया मोटर व्हीकल एक्ट   व्यवसाय का एक सुनहरे अवसर लेकर आया है जिसमें बिजिनेस की अपार सम्भावनायें है। किसान , मजदूर , मजबूर, अमीर गरीब  सभी  इसकी जद में है आइये  जुर्माने की चिंता छोड़ इस व्यवसाय पर सकारात्मक रूप से विचार करें। 
जय हिन्द ! जय भारत !


18.9.19

पोलूशन (PUC) सर्टिफिकेट वैधता व् अनिवार्यता


नया  मोटर व्हीकल एक्ट विदेश में लाखों  खर्च करवहां लागू क़ानून की स्टडी पर आधारित है,  नए एक्ट में  जुर्माने की भारी  राशि  अमेरिकाजापानइंग्लैंड  जैसे देशों को ध्यान में रख कर तय की गई है।  ऐसा  इस  एक्ट से जुड़े लोगों का कहना है। एक्ट में जुर्माने की राशि राज्य सरकारें  कम नहीं कर सकती, इसमें  भी CAG पेंच फंसा है ,साथ ही इसमें प्रत्येक वर्ष  10% वृद्धि /बढ़ोतरी का  प्रावधान भी है Ɩ
  देश में इस समय   भारी  भरकम जुर्माने की राशि  को लेकर हाहाकार मचा है।  इसी लिए राज्यों न जनता नाराज न हो जाए के डर  से  अभी तक नया  मोटर व्हीकल एक्ट लागू ही नहीं किया इसमें सत्ता पक्ष व्  विपक्ष  दोनों  पार्टियों की  राज्य सरकार है।  
इस एक्ट में  हर रूल तोड़ने/ कागजात न होने पर सभी के लिए अलग- अलग  जुर्माना निर्धारित है ,जो  चालान में जुड़ता चला जाता है Ɩ एक समय में  जुर्माने की कोई अधिकतम सीमा  नहीं है । जुर्माने की राशि  व्हीकल की कुल कीमत से भी अधिक हो सकती है  जैसा कि  देखने में आ रहा है। 
इसकी जद में किसानमजदूरमध्यम वर्गउच्च वर्गव्यापारीउद्योगपति सभी हैं   
  अमेरिका जिसकी आबादी भारत की कुल आबादी का लगभग एक तिहाई के बराबर  , अमेरिकी भूभाग भारतीय क्षेत्रफल से लगभग  तीन गुना अधिक  व् मुद्रा/करेंसी ( डॉलर) की  क्रय-शक्ति भारतीय करेंसी से लगभग 70 गुना ज्यादा है।  अतः वहां के  जुर्माने की भारत में तुलना करना मेढ़की के पैर  में नाल  ( लोहे की बनी नाल घोड़ेबैलोंभैसा आदि के खुरों में  ठोकी जाती है ) ठोकने  जैसा है , भारत में  यह  कहाँ तक उचित  है इसका मूल्यांकन तो  आने वाला समय ही करेगा।     
सभी जानते हैट्रेफिक रूल फॉलो करने के साथवाहन के साथ अन्य बातों के अलावा  कुछ अनिवार्य कागजात/सर्टिफिकेट भी होने जरूरी है।  जैसे  ड्राइविंग लाइसेंस (DL), गाड़ी रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट(RC), वाहन की   बीमा  पालिसी  व् एक अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज  “प्रदूषण नियंत्रित प्रमाणपत्र” (PUC)  जिसे  “पोल्लुशन सट्रिफिकेट” या धुवें की पर्ची/ सर्टिफिकेट के नाम से भी  जाना जाता  है। 

न्यूज पेपर्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में दिल्ली में  लगभग  1 करोड़ 15 लाख 93 हजार  से अधिक  वाहन रजिस्टर्ड है।  यह बात अलग है कि इनमें से कितने सड़क पर रोजाना चलते है ? कितने सप्ताह में एक या दो  बार या कितने वाहन रजिस्टर्ड  तो दिल्ली में है  परन्तु चलते दिल्ली से बाहर  है। कितने वाहन या तो काटे/ खत्म  किये  जा चुके है या कबाड़ में पड़े है। 
इसका आंकड़ा शायद ही किसी के पास  हो। यह भी तथ्य है कि कुल चालानों में से 40% टू-व्हीलर,  25% कारों का चालान होता है Ɩ 
इस प्रकार देखा जाए तो जुर्माने की सबसे बड़ी  मार टू-व्हीलर व् कार वालों पर है। ऑन लाइन बिक्री के युग में आज टू व्हीलर सीधा सीधा लोगों के रोजगार से जुड़ा है Ɩ 

वाहनों की संख्या को  देखते हुए , दिल्ली में लगभग 940 प्रदूषण जाँच केंद्रों की  संख्या  नाकाफी है Ɩ  कुछ मामलों को छोड़ , बाकी को  हर 3 माह में एक  बार  प्रदूषण  जांच करवानी  आवश्यक है।  
 अतः दिल्ली में  प्रदूषण केन्दों की संख्या ऊँट के मुहं में जीरा है, एक अनार सौ बीमार वालों जैसी है। 
  उपरोक्त के आधार पर  केंद्र सरकार/राज्य सरकारों से अनुरोध है -
1- फोरस्ट्रोक इंजन वाले  वाहनों  के लिए “PUC”  सर्टिफिकेट की  वैधता अवधि 3 माह से बढ़ाकर  12  माह की जानी चाहिए। 
2- ट्रेफिक पुलिस को प्रदूषण जांच से अलग करना चाहिए। प्रदूषण  जाँच , संबंधित विभाग  मशीनों से जाँच  करे। 

3- यदि  ट्रेफिक पुलिस  प्रदूषण की जांच करती है तो उसे   अल्कोहल  मीटर की तरह , प्रदूषण जांच  जैसी  मशीनकिट  से लेस किया  जाए।  
केवल  सर्टिफिकेट न होने से  वाहन को  बिना जांचे यह कैसे सिद्ध किया जा सकता है कि वाहन  प्रदूषण  फैला  रहा  है।  भारी जुर्माने राशि को देखते  हुए,  इसमें  भ्रष्टाचार  की  अपार  संभावनाएं है। साथ ही यह  प्राकृतिक  न्याय के  सिंद्धातों  के विपरीत है,  जो यह कहता है -"भले ही सौ अपराधी छूट  जाएँ परन्तु किसी निरापराध  को सजा न हो  "Ɩ 
   TET (टीचर्स के लिए ) , AIBE ( वकालत के लिए ) के एग्जाम इसके सटीक उदाहरण है। जहाँ डिग्री  के साथएग्जाम पास करना भी आवश्यक है Ɩ 
३- प्रदूषण सर्टिफिकेट की  वैधता समाप्त होने के बादवाहन चालकों को  कम से कम  7  दिन की  रियायत दी जानी  चाहिए। जिसके अंदर वह    वाहन का पुनः पोलुशन करा सके।  अभी इस तरह  कोई  रियायत  नहीं है। 
4- केंद्र/राज्य सरकारों  को वाहन  चालकों  से वसूले  जुर्माने को आय का साधन नहीं बनाना चाहिए एक न्यूज रिपोर्ट के अनुसार नए मोटर व्हीकल से दिल्ली सरकार को इस  वर्ष पिछले वित्त वर्ष के  50  करोड़ रूपये के मुकाबले चालू  वित्त वर्ष में लगभग 160  करोड़ रूपये की कमाई  हो चुकी है।  
जनहित में  लोगों को केम्प आदि लगाकर ट्रेफिक रूल्स के प्रति  जागरूक करना  चाहिए। भारी चालान/जुर्माना कोई समाधान/सलूशन नहीं है। क्या मृत्यु दंड या आजीवन कारावास  जैसी सजाओं  के डर से अपराधी  जुर्म नहीं करते ?

5- किसानों को खेती में उपयोग होने  वाली मशीन  जैसे  ट्रेक्टर  आदि  को मोटर व्हीकल एक्ट के दायरे से बाहर करना चाहिए। कहीं  ऐसा   हो इससे  खेती  पर विपरीत प्रभाव पड़े।  किसान किसानी छोड़बीमा ,  प्रदूषण आदि की लाइन में लगा रहे  या भारी चालान भर,  आत्म ह्त्या मजबूर हो जाए  
लोगों में नारजगी से  सरकार कि  स्तिथि कहीं ऐसी न बन  जाए कि गए थे चौबे बननेदूबे  बन के लौटे वाली हो जाए   Ɩकृषि क्षेत्र का  हमारी अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है। 
 आशा है केंद सरकार जनभावना को ध्यान में रख नए मोटर व्हीकल  एक्ट में  भारी जुर्माने पर  पुर्विचार करेगीं  व् जनता को राहत  देने का  काम करेंगी। 

बहुजन सुखाय -बहुजन हिताय के साथ 
-जय हिन्द !जय भारत !


8.9.19

ट्रैफिक चालान पर ९०% सब्सिडी ?

The New Motor Vehicles (Amendment) Act ,19 , 1 Sep.19  से  लागू हो जाने के बाद से  देश  में  ट्रैफिक चालान की भारी भरकम  कंपाउंड (मिश्रित) जुर्माने  की राशि को लेकर  चारों ओर  हाहाकार मचा है।  ₹- 15000/ की स्कूटी - ₹ -23000/-चालान  राशि ,  ट्रैक्टर पर ₹-59000/- जुर्माना , भारी राशि  जुर्माने पर  नाराज होकर बाइक सवार दवरा  बाइक जलाना।  ट्रेफिक पुलिस-आम जनता के बीच तू-तू, मै-मै  की खबरें  T.V., सोशल मीडिया पर आम है। ऐसा लगता है जैसे जो जोश 370 ,35A को लेकर चढ़ा है, उसे  नए मोटर व्हीकल एक्ट के  भारी, कंपाउंड जुर्माने ने एक ही  झटके में उतार दिया है। 
 लोग ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर को लेकर नाराज है।  जिन्होनें 2029 में लागू होने वाले जुर्माने को 2019 में लागू कर दिया। जुर्माने की राशि की तुलना जापान, इंग्लैंड , अमेरिका से होते देख लोग  कह रहे है कि वहां के जीवन स्तर व् भारत के जीवन स्तर में जमीन- आसमान का अंतर् है।  तुलना बराबर के आंकड़ों से होनी चाहिए Ɩ रही बात  जनता की सुरक्षा की , लोगों में ट्रैफिक  नियमों की जागरूकता से इसे दूर किया जा सकता है। 

आइये भूतकाल में हुए एक निर्णय से इसे समझने का प्रयास  करें Ɩ1975 में  इमरजेंसी के दौरान संजय गांधी के  “ड्रीम-प्रोजेक्टनसबंदी”  को जोरों से चलाया गया।  राशन के लिए नसबंदी, I.T.I.  में एडमिशन के लिए नसबंदी, ट्रांसफर के लिए नसबंदी Ɩ ऐसा लगता था जैसे नसबंदी न हुई कोई रिश्वत हो गई, जिसे कराते ही सभी काम हो जाते थे।  उस समय  इस तरह की जोर जबरदस्ती से लोगों में नाराजगी फ़ैल गयी और नतीजा सरकार  तो गई ही , इंदिरा जी अपने गढ़ में ही हार गयी Ɩ   

भारी भरकम जुर्माने, ट्रेफिक पुलिस-आम-जनता में  भारी भरकम चालान की रकम को लेकर आये दिन होने वाली हाथापाई,  चालान  राशि  पुलिस  के विवेक पर निर्भर  होने के  कारण  भ्रस्टाचार को बढ़ावा  देने के लिए  एक  खिड़की  खिड़की  खुलती  नजर आ रही है, को देखकर यही लगता है कि लोगों में केंद्र सरकार के प्रति  इस निर्णय  को लेकर  रोष है Ɩ जो सबके साथ, सबके विकास  व् सबके  विश्वास में  कहीं न कहीं दरार  पैदा करने का काम  कर रहा है  
 अभी देश में सड़कों का उचित रखरखाव नहीं ,  प्रकाश की उचित व्यवस्था नहीं ,  उचित इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है।  पोलुशन सेंटर्स  पर भीड़ व् सर्वर डाउन की समस्या से आम जनता  परेशान है।  भारी चालान राशि के डर  से लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़  रहा  है। जिन लोगों का भारी भरकम  चालान कटा है -उस परिवार की स्तिथि को भी मीडिया में उजागर कर इस बात को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है     वर्तमान में  फोर स्ट्रोक टू  व्हीलर के लिए  प्रदूषण सर्टिफिकेट की अवधि मात्र  3 माह है, जो काफी कम  है, जिसे  6 माह तक  किये जाने की आवश्यकता है।  
खैर लगता है , अब इन तर्कों,  सुझावों का कोई मतलब नहीं रह  गया है।  जुर्माने की राशि में  राहत देने का काम राज्य सरकारों को करने की आवश्यकता है। यह शक्ति  अधिनियम में है।  वेस्ट बंगाल, राजस्थान, मध्यप्रदेश  , पंजाब  राज्य जैसी सरकारों ने जनहित में इस क़ानून का नोटिफिकेशन लागू नहीं किया है। 

भारत में लोगों के वर्तमान निम्न जीवन स्तर ( Standard of Life ) , लोगों की कम क्रय-शक्ति ( Purchasing  Power ) संसाधनों की भारी कमी  को देखते हुए (जिसकी तुलना   अमेरिका , जापान , इंग्लैंड  व्  तेल के धनी  अरब  देशों  संसाधनों से करना  सरासर बेमानी है)  , केंद्र/राज्य सरकारों को  ट्रेफिक के भारी भरकम जुर्माने की   वर्तमान दर  90% कम  करनी चाहिए या उस पर  90 %  सब्सिडी का प्रावधान किया जाना चाहिए।  ऐसा करने से सांप भी मर जाएगा, लाठी  भी न टूटेगी। और केंद्र सरकार  सबके साथ, सबके विकाश  व् सबके विश्वास के पथ पर चल सकेगी। 
  
वन्दे  मातरम के जय घोष के साथ ,
 जय हिन्द! जय भारत! 








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