3.4.21

देश में अल्पसंख्यक मापने का पैमाना

  

 1993  में तत्कालीन केंद्र की कांग्रेसी सरकार  दवरा वोट बैंक व् तुष्टिकरण की  राजनीति को ध्यान में रखते  हुए , अल्पसंख्यक मापने के लिए बनाया गया  पैमाना वर्ष  2021 आते-आते  पूरी तरह से धवस्त/ विफल हो गया है।

पैमाने के आधार पर  वर्तमान में धर्म आधारित   छह  वर्ग  अल्पसंख्यक की श्रेणी में है।  1- मुस्लिम 2 - सिख 3- ईसाई  4- बौद्ध 5-जैन   6-पारसी।मजे की बात यह भी है कि  देश में यहूदी  अल्पसंख्यक  होते  हुए भी  इस  श्रेणी में  नहीं आते।  

  नेताओं ने सत्ता में बने रहने के लिए  बांटों व् राज करों , की नीति पर चल,  उपरोक्त में से एक खास वर्ग को  विशेष लाभ दिए जो निश्चय ही  तुष्टिकरण की श्रेणी में आते है। 

देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी होने व् जनसँख्या अनुपात को देखते  हुए  यह वर्ग अब अल्पसंख्यक में नहीं है . परन्तु  राजनैतिक लाभ के लिए  समान अधिकार  के अतिरिक्त इस वर्ग को  और भी विशेष अधिकार  दिए  गए है  जैसे -  विवाह क़ानून के अतिरिक्त  इनके इस वर्ग के  धार्मिक व् शिक्षण संस्थानों को विशेष छूट रियायते , सरकारी नौकरी  में आरक्षण , सरकार की तरफ से  जनता के कर की कमाई से इमामों को मासिक तनख्वाह , धार्मिक मदरसों को सरकारी सहायता ,  इनकी धर्म /दीनी शिक्षा पर के लिए  करदाताओं  के पैसे का खर्चा आदि  इसमें बंगाल  जहां   विशेष समुदाय की  आबादी  ३०% से भी अधिक है ,  दिल्ली व् अन्य राज्य  शामिल है।  

  

जैसा  कि  सर्विदित ही  है  वर्तमान में  बहुसंख्यक  हिन्दू  नौ  राज्यों में अल्पसंख्यक है Ɩ इन राज्यों में हिन्दू  अल्पसंख्यक  होने के बावजूद यहां  हिन्दू को फिर भी  बहुसंख्यक  मान  अल्पसंख्यक के लाभों से वंचित  किया जा रहा है।  यहाँ  अंधा  बाटे  रेवड़ी फिरी फिरी अपनों को  देय।  वाली कहावत खरी सोलह आने खरी उतरती है Ɩ

यदि वर्तमान  डेमोग्राफी ( जनसांख्यिकी/ जनसंख्या अनुपात ) का अध्ययन किया जाए तो हम पाते है कि राज्य व्  स्थानीय  स्तर  जनसख्या  अनुपात इतना बदल गया है कि  पता ही नहीं चलता  कौन अल्पस्ख्यक  है , कौन  बहुसख्यक।  वोट बैंक व् तुस्टिकरण  की नीति ने भारतीयों को  अल्पस्ख्यक-बहुसख्यक में बाँट दिया है।  ऐसे में देश की उन्नति कैसे होगी यह समझ से परे है।  

इस समय सत्ता सुख  के लिए घुसपैठियों के जरिए  जनसँख्या अनुपात  को  बदलना देश में एक फैशन बन गया है   जम्मू  , बंगाल  , असम  इसके कुछ  उदाहरण है।   करदाताओं का पैसा विकास कार्यों में न खर्च होकरघुसपैठियों को जो विशेष वर्ग के है अल्पस्ख्यक मान मुफ्त राशन , बिजली-पानी   देने में खर्च हो रहा है  

यही  कारण कि   केंद्र की कल्याणकारी  योजना व् कार्यक्रमों का लाभ अरबो खर्च होने के बाद भी  देश के मूल नागरिकों को नहीं मिल पा रहा है। जनसख्या नियंत्रण , स्वास्थय सेवा जैसे कार्य देश के संसाधनों पर  बाहरी लोगों के कब्जा करने के कारण  असफल हो रहें है। 

 इन दिनों बंगाल  , असम , केरल आदि  राज्यों में चुनावी दौर है।   मीडिया में  जनसख्या  अनुपात की चर्चा है।  जिसे देखकर कर यही कहा जा सकता है कि   देश में  1993 में बना  अल्पसंख्यक घोषित करने के मापदंड पूर्णतः  विफल  हो गया है। देश में घुसपैठ के कारण  जनसंख्या अनुपात तेजी से  बदला है।  राज्य व्  स्थानीय  स्तर पर जनसख्या अनुपात  30% ,50% , 60% , 75% तक है।  एक खास वर्ग की जनसंख्या  बहुसंख्यक से अधिक है ,  परन्तु फिर भी सरकारें इन्हें  अल्पसंख्यक मान भरपूर  लाभ दे  रही है।  ऐसा लगता है जैसे  हिन्दू दूसरे  दर्जे का  नागरिक हो  

वर्तमान में अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रोँ  में  हिन्दू अपने घर परिवार  सुरक्षा को लेकर  चिंतित है। दिल्ली दंगों के दौरान ऐसे क्षेत्रों में  रहने वाले हिन्दू परिवारों में यह डर  साफ़ देखने को मिला। 

यह भी कटु सत्य है कि  बहुसंख्यक क्षेत्रों में  अल्पसंख्यक वर्ग अपनी  सुरक्षा व्  बिना भेदभाव के शांति से जीवन जी सकता है , परन्तु   अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में हिन्दू वर्ग अपनी सुरक्षा , घर परिवार को लेकर  हमेशा  ही भय लगा रहता है   इसी लिए  अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों से  हिन्दू पलायन  जारी है। चाहे वो गावं  हो या शहर का कोई विशेष  क्षेत्र  

सभी को खुले मन से  उपरोक्त परिस्तिथियों पर विचार  करना  चाहिए   घुसपैठ के  कारण  जनसंख्या अनुपात में तेजी से बदलाव  हुआ है।  इसी को देखते  हुए  केंद्र सरकार को बिना देरी किए  देश की एकता , अखंडता  व् जनहित में अल्पसंख्यक  घोषित करने  के मापदंड /पैमाने  को नए सिरे से तय करना चाहिए . 

यही इस समय देश की एकताअखंडता व् समय की मांग  है। 

 

जय हिन्द जय भारत 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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