31.10.18

चलन में सिक्कों की बहुतायतता



नोटबंदी  के बाद लोगों ने डिजिटल लेन-देन को व्यवहार में ज्यादा से ज्यादा लाना शुरू कर दिया। छोटे-मोटे पेमेंट के लिए Paytm Wallet  जैसे  वालेट को बढ़ावा मिला ।  जो कैश-लेश के साथ-साथ वेट-लेश भी था।  आज अधिकतर  लोग चाय-पानी  बिजली- पानी , पेट्रोल , डॉक्टर फी , मेडिशन आदि के भुगतान के कुछ  इसी तरह के वालेट का प्रयोग करते है। 
भुगतान के रूप में केश (Cash) से अलग सब्सिट्यूट  मिलने व् मुद्रा स्फीति ( Inflation) के  कारण  बाजार में भुगतान के लिए  सिक्कों (coins) की मांग आश्चर्यजनक रूप से घटी है। 
चलन (Circulation) में  सिक्को की अधिक उपलब्धता  व्  उनको  बैंको दवरा असुविधा के कारण  जमा करने से अस्वीकार करने के कारण, लोग सिक्को को लेने से कतराने लगे है।  इस समय  50 पैसे से लेकर 10 रूपये तक के सिक्के चलन में है। परन्तु  कुछ सिक्के लोगो दवरा अस्वीकार  किये जाते है ।  जैसे  50 पैसा का  सिक्का , एक रूपये का छोटा सिक्का आदि-आदि  

हैरानी की बात यह है कि 10 रूपये के 14 प्रकार के  सिक्कों में से केवल एक विशेष प्रकार के डिजाइन वाला सिक्का ही लोगों द्वारा स्वीकार किया जा रहा है । एक तरह से सिक्कों पर ग्रेशन के नियम का यह अपवाद लागू है-  जिसमें न लोग बुरी मुद्रा लेंगें, न देंगे । यहां दस रूपये के 13 प्रकार के डिजाइन  वाले  अन्य सिक्को को आम लोग बुरी मुद्रा के रूप में लेते है।
 पूजा स्थलों आदि में करोड़ों के सिक्के बैंकों में आसानी से न जमा होने के काऱण जमा है। बिना उपयोग के  यूं ही  पड़े सिक्कों से पूंजी का प्रवाह तरलता  रूकती है 

उपरोक्त स्तिथि को देखते हुए सरकार से अनुरोध है कि डिजिटल लेन-देन  को देखते  हुए  चलन में प्रचलित सिक्कों का कुछ प्रतिशत सिक्कों ( 25%-30%)  बैंको या अन्य  एजेंसी के माध्यम से चलन अथवा बाजार से  वापस ले। 
 इससे लाखो लोगों को सिक्कों के अस्वीकार करने का सामना भी न करना पड़ेगा।  छोटे-छोटे  फुटकर व्यापारी, धार्मिक  स्थल , बैंक आदि को भी ठहरी  पूंजी में तरलता मिलेगी। 
 इस सम्बन्ध सरकार दवरा उठाया गया सकारात्मक कदम निश्चय ही न केवल लोगों के मन जीतने का काम करेगा वरन  बाजार में पूंजी की उपलब्धता  को भी बढ़ाएगा  जिससे रोजगार उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी   




17.10.18

तू पागल !

पागल शब्द बच्चा,बूढ़ा, जवान सभी लगभग हर रोज दिन में न जाने कितनी ही बार जाने अनजाने  प्रयोग करते  हैं। यहाँ यह भी है कि  पागल का अर्थ पागल ही हो , यह कतई जरूरी नहीं ।  इसका आशय वाक्य या परिस्तिथि पर निर्भर करता है, जब जहाँ इसे बोला गया हो। कहने का तातपर्य यह कि पागल शब्द का अर्थ हर बार बदल सकता है। शायद  लोगों का इसी लिए पागल  शब्द के प्रति पागलपन  किसी  दीवनगी की हद तक है। 
कुछ उदाहरण इस प्रकार है  -क्रोध में पागल , प्यार में पागल , सरकार का पागल होना , अरे!  यार छोडो !उसकी बातों पर मत जाओ ! पागल है !!
 कह सकते है पागल शब्द उस एंटीबॉयटिक दवा की तरह है, जिसे  लोग  बिना  सोचे समझे प्रयोग करते रहते है।  अरे ! मै  भी पागल  हूँ ! आया  था हरी भजन को ,ओटन  लगा कपास।    
इसी पागल  शब्द पर घटित May,16 की  घटना  याद  हो आयी। लॉ एग्जाम  के कारण  एक वर्षीय जुड़वाँ नातिनों में से एक जिसे प्यार से "छुट्टन" कहते है , को श्रीमती जी ने अपने पास रख लिया। "छुट्टन"  देर रात  तक  जागती। 
 ठुमक कर ,कभी सरक कर यहाँ, कभी वहां , कभी  इस कमरे से उस कमरे में , कभी  गोद  में,  कभी  जमीन पर , कभी  पलंग  पकड़कर  खड़े  रहना , कभी  ट्यूब  लाइट की  तरफ एकटक  देखना आदि-आदि  उसके खेलों में शामिल था। परिवार के सदस्य देर रात तक जागकर खेल लीला  का आनंद लेते।     
हम कभी-कभी प्यार से  कहते -" ऐ  पागल ! सो जा !" कहते है न " THE CHILD IS FATHER OF THE MAN" 
 शायद पागल शब्द का जादू छुट्टन पर भी चल चुका था । छुट्टन उन दिनों बोलती न थी। परन्तु 
एक दिन देर रात के जागने से परेशान हो जैसे ही उसे बोला  - “पागल सो जा !”
वो तपाक से बोल पडी - तू पागल ! ये उसका पहला  वाक्य  था !! शायद वह यह शब्द की महत्ता को पहचान  चुकी थी !



5.10.18

सावधान ! सावधान !-सफाई कर्मी हड़ताल पर !

12 Sep.,18  से पूर्वी दिल्ली नगर निगम ( “EDMC “) के  सफाई कर्मी लगातार  हड़ताल पर है।  गलियों , सड़कों पर कूड़े के ढेर लगे है। दिल्ली  राज्य सरकार  के अंतर्गत आने  वाले दिल्ली के तीन  निगमों से एक “ EDMC”  की  कमजोर  वित्तीय स्तिथि  ने  अपने कर्मियों की सैलरी के लिए    पूर्ण रूप से  राज्य की सरकार  फंडिंग पर निर्भर  बना  दिया है। वर्तमान स्तिथि  को देखकर ऐसा   लगता है - राज्य सरकार  व्   नगर निगम  में आपसी तालमेल का  पूर्ण अभाव है।  परिणामस्वरूप  हानि   आम  नागरिकों  को उठानी  पड़  रही है।  राज्य सरकार से  समय पर फंडिंग ने मिलने के कारण  निगम  , अपने कर्मियों को  वेतन  व् अन्य  भत्तों  दे पाने में असमर्थ है । इन्हीं मांगों को लेकर सफाई कर्मी हड़ताल पर है । 
 आम नागरिकों की  स्तिथि खरबूजे जैसी है। चाकू खरबूजे पर गिरे  या खरबूजा  चाकू पर !  दोनों ही हालत  में कटना  खरबूजे को ही है।    
आम लोगों का मानना है कि  राज्य सरकार  केंद्र या निगम से  नाराज  होकर या मीडिया अटेंशन के लिए, जब तब  निगम   की फंडिंग रोक देती है ।  इससे  वेतन आदि न मिलने पर  निगम कर्मी  हड़ताल करते है।  ऐसा लगभग दिल्ली की जनता पिछले  साढ़े  तीन वर्ष से अधिक समय से  देखती आ रही  है।     

जब तक सफाई कर्मियों की हड़ताल खत्म नहीं हो जाती ।  सड़कों पर  कूड़ा न फैले इसके लिए निगम  व् राज्य  सरकार को एडवाइजरी  जारी  करनी चाहिए ।
 जिसमें  क्या  करें  और क्या  न करें   की  सलाह  हो -
 जैसे -
-हड़ताल के दौरान  नागरिकों  को  कूड़ा  केवल  ढलाव  घर पर ही डालना  चाहिए।
 -नागरिक कार पूल की तरह “ डस्टबिन-पूल” करके  बारी -बारी से एक दूसरे का कूड़ा ढलाव घरों पर ही डाल सकते है।  ऐसा करने से   हड़ताल के समय  कम परेशानी  होगी ।
- हड़ताल के  समय सड़क , गली  में कूड़ा  बिलकुल न डाले। 
हड़ताल के समय ढलाव पर कूड़े डालने  का कार्य पं म मोदी जी के स्वच्छता  अभियान को सफल  बनाने का एक  सफल प्रयास माना  जाएगा।   
 हड़ताल के समय  नागरिक  वेट एन्ड  वाच की नीति पर चल , निगम  व् राज्य  सरकार  के  वाक् युद्ध में हार- जीत के फैसले का  धैर्य पूर्वक इन्तजार करना चाहिए । अर्थात  तेल देखें  व् तेल की धार देखें। 
यदि सम्बंधित प्रशासन सफाई कर्मी  हड़ताल से पूर्व कुछ इसी तरह की एडवाइजरी नागरिकों के लिए जारी कर दे तो सड़कों पर कूड़ा भी न फैले  व्  गंदगी के ढेर भी न लगे। 
लोग यह सोचते हुए  -चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय !
                 दो पाटन  के बीच में साबुत  बचा न कोय ।।  हड़ताल  को एन्जॉय  कर सकते है । 

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