32 वर्षीय
बिर्टिश अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस ने वर्ष 1798 में "An
Essay on the Principle of Population" में जनसंख्या सिन्धांत
प्रतिपादित किया ! जिसमें अन्य बातों के अलावा यह
भी बताया कि प्रक्रति बढती जनसंख्या को अपने
संसाधनों के अनुरूप नियंत्रित करती रहती है/
जनसंख्या बढ़ोतरी ज्यामितीय
(geometrically) तरीके से
बढती है जैसे - 1, 2, 4,
16, 32, 64, 128, 256 etc/ भोजन व् अन्य प्राक्रतिक साधन
अंकगणितीय (arithmetically) तरीके से / जैसे -1, 2, 3, 4, 5, 6,
7, 8, etc.
इसी
से जनसंख्या, भोजन व् प्राक्रतिक साधनों में अंतर
गड़बड़ा जाता है और प्रक्रति को उसमें संतुलन
स्थापित करना पड़ता है/
कुछ
उपायों में जनसंख्या रोक पर प्रक्रति-कुदरती तरीके से रोक लगाती है /
भूख, महामारी, अकाल, बीमारी, प्राक्रतिक-आपदा, युद्ध जैसी
विभीषिका उन्हीं तरीकों में शामिल है / ये प्रक्रति
का जनसख्या व् अपने संसाधनों में संतुलन- सामंजस्य
बनाने का तरीका है / तुलसीदास-रामचरित मानस की चौपाई में –“ऐहिक देविक
भौतिक तापा” का उल्लेख है /
अतीत में हुए अकाल, महामारी, युद्ध, प्राकृतिक-आपदा
जिसमें सुनामी, बाढ़, भूकंप आदि इसके उदाहरण है/ अभी हाल ही
में आई उतराखंड - केदार नाथ तीर्थ
स्थान पर आई आपदा जिसमें हजारों लोग अकाल म्रत्यु को प्राप्त हुए इसका
ताजा उदाहरण है / ये
केदारनाथ में जनसंख्या विस्फोट यानी प्राक्रतिक संसाधनों व् जनसंख्या की बीच
असंतुलन का ही परिणाम है/ देश व् विदेश में
रोजाना आतंक की घटनाएं घट रही है
जिसमें सैकड़ों लोग असमय मौत का शिकार हो रहें है, भी जनसंख्या
विष्फोट का परिणाम है /
समाधान एक ही है- जनसंख्या विष्फोट से बचा जाए
ताकि प्रक्रति व् जनसंख्या के बीच असंतुलन न पैदा हो व् समय
रहते प्रथ्वी जैसे
रहने लायक किसी अन्य गृह की खोज की जाए/ जनसंख्या का एक स्थान
पर केन्द्रीय करण की जगह विकेन्द्रीयकरण (पलायन ) ही इसका
एक
मात्र हल है
/ इससे प्रक्रति का संतुलन बरकरार रहेगा /अन्यथा संकुचित होते प्रक्रति
साधनों के कारण प्रक्रति को थॉमस माल्थस की जनसंख्या की थ्योरी
पर अमल करने को मजबूर होना पड़ेगा/ और जब तक प्रक्रति जनसंख्या व अपने साधनों
में संतुलन नहीं कर लेती तब तक असमय , क्रूर म्रत्यु का शिकार होना पड़ेगा/ अब
देखना है प्रक्रति बुध्धिमान है या मनुष्य ?