19.6.22

अल्पसंख्यक ही बहुसंख्यक ! बहुसंख्यक ही अल्पसंख्यक !!

 अल्पसंख्यक ही  बहुसंख्यक!  बहुसंख्यक ही अल्पसंख्यक !!

 1992 में केंद्र  सरकार ने  बिना स्टडीआँकड़े एकत्र किये,  मापदंड व् परिभाषा  निर्धारितं किये बिना ,  भारतीय लोकत्नत्र के  अश्वमेध यज्ञ के   घोड़े को अजेय  बनाने के लिए, एक  चक्र- व्यूह रचना के अंतर्गत  जीरो आविष्कार या  छद्यम  शब्द  सेक्युलर की  तरह धर्म के  आधार  पर  जिस  कृत्रिम शब्द का आविष्कार किया - वह क्रांतिकारी  शब्द था -  अल्पसंख्यक !  

1992 में रोपा गया  “अल्पसंख्यक  वटवृक्ष आज  तत्कालीन  सरकार   के आविष्कार के कारण  देश-दुनियामीडिया की सुर्खिया बटोर रहा है 

 परन्तु आज देश में धार्मिक  जनसख्या अनुपात अर्थात डेमोग्राफी  बदल गया है।  जिस  कारण  यह शब्द खरा नहीं उतरता 

 

यदि विश्व के आँकड़ों पर नजर डाले तो विश्व में जहां 100  क्रिश्चयन देश है मुस्लिम देशों की संख्या 57 है, हिन्दू देश एक भी  नहीं , अतः इस आधार पर   विश्व में हिंदू-सनातनी  अल्पसंख्यक है।  

 वैसे 1947 में हिन्दू-मुस्लिम को आधार बना देश का बंटवारा हुआ , मुस्लिम के लिए पाकिस्तान   व् हिन्दू के लिए हिन्दुस्तान-भारत  बना ! परन्तु   सत्ता के लालची भेड़ियों ने छद्यम सेक्यलरिटी  के नाम पर  देश का मूल  स्वरुप ही बदल कर रख दिया।   

   

विश्व की   डेमोग्राफी- धार्मिक जनसख्या अनुपात पर नजर डाले तो  सबसे ज्यादा आबादी ईसाई धर्म को मानने  वालों की है , दूसरे  नंबर पर मुस्लिम धर्म  की है। इतनी बड़ी आबादी के बीच  विश्व  में  हिंदू-सनातन धर्म का पालन करने वालों की जनसख्या आंकड़ों के हिसाब से  अल्पसंख्यक की श्रेणी में आती है। 

 आइये भारत की  डेमोग्राफी-धार्मिक जनसख्या अनुपात पर नजर डाले , तो पाते है कि  भारत में नौ राज्यों में जहां हिन्दू अल्पसंख्यक है, वही  देश में जिलों के हिसाब से धार्मिक जनसख्या अनुपात में 200 जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं।  

यदि तहसील-तालुका के आंकड़े देखें तो और भी चौकाने वाले है।  उत्तर  प्रदेश राज्य को ही ले-  तो दो दर्जन के लगभग  जिले  ऐसे है  जहां हिन्दू-मुस्लिम आबादी अनुपात  लगभग  बराबर सी है, परन्तु फिर भी वहां अल्पसंख्यक  मुस्लिम धर्म के लोग ही है।  असम , बंगालबिहारमहाराष्ट्र केरल आदि राज्यों में  भी  धार्मिक जनसख्या अनुपात इसी तरह का है। 

  भारत जैसे देश में  जहाँ देश व्  मीडिया संसद सर्वोच्च  न्यायपलिका  में  जहां  एक ख़ास  अल्पसंख्यक धर्म की  बनावटी  समस्या को लेकर  हाय-तौबा मचती है  जैसे – CAA आदि  पर ,मौलानाओं के दबाव में सामाजिक सुधार रोके जाते है , इससे  महिलाओं की आवाज दबती है,  अन्याय होता है  

वर्तमान में  केंद्र व्  राज्य सरकारों दवरा  शोर-शराबे की बीच बहुत सारे लाभ  एक ख़ास  अल्पसंख्यक धर्म के लोगों को दिए जा रहें है । जैसे   दीन  की पढाई के लिए मदरसों को अनुदान,  इमामत के लिए मौलवी को सैलरी  जैसे दिल्ली व् बंगालउत्तरप्रदेश  आदि  राज्य नौकरी में आरक्षणशिक्षा स्कॉलरशिप आदि।  यह सब ख़ास अल्पसंख्यक धर्म  को तो  है परन्तु  जहां राज्यों,जिलोंतहसीलों-तालुका  में  हिन्दू अल्पसंख्यक  है  वहां  इस तरह के लाभों से  उसे  वोट बैंकमीडियादुनिया के दबाव में  नजरअंदाज किया जाता है। यह एकतरफा पक्षपात नहीं तो क्या है ?    

 अंत में सारांश है कि भारत में अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का खेल खत्म होना चाहिए। यह देश की अखंडता के लिए खतरा है     मीडिया में  तथाकथित अल्पसंख्यक कथित अत्याचार की शोर शराबे से   देश को विश्व के पटल पर असहज स्तिथि का सामना करना  पड़ता है  देश की  साख गिरती है।  

आइये एक उद्धरण से समझते है   -जिस प्रकार हर  ठंडा- मतलब कोका-कोला नहीं  होता , उसी प्रकार  वर्तमान डेमोग्राफी के हिसाब से  भारत में अल्पसंख्यक का मतलब मुसलमान कतई  नहीं हो सकता ,  वह हिंदूसिख ईसाई बौद्ध जैन पारसी या यहूदी भी हो सकता है। 

 

  देश की वर्तमान डेमोग्राफी-धार्मिक जनसख्या अनुपात को  देख  फिल्म  का एक डायलॉग- जो चाचा है वही भतीजा हैजो भतीजा है वही चाचा है चाचा कोई है ही नहीं सटीक बैठता है  -

 

इसी तरह  "जो  बहुसंख्यक हैवही अल्पसंख्यक हैजो  अल्पसंख्यक  वही  बहुसंख्यक है ,  अल्पसंख्यक कोई है ही नहीं ,

 जिस प्रकार  त्वचा  से  उम्र का पता नहीं लगता ,  उसी  प्रकार  वतर्मान डेमोग्राफीधार्मिक जनसख्या अनुपात   से अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक  का पता ही नही चलता , निर्धारण नहीं किया जा सकता। 

देश की इसी कमी का  लाभ उठाकर  भारत की  सामजिक  योजनाओं का लाभ लेने के की फिराक में  घुस पैठिये,  मुस्लिम देशों का रूख न कर  भारत में पहचान छुपाकर  घुसपैठ कर छुप कर  घुस आये है।

वैसे यह बात और है क़ि  57  मुस्लिम देश इस तरह के घुसपैठिये को  अपने देश की सुरक्षा में  खतरा मान , उम्मा के सदस्य होने पर भी उम्मा के  नाम पर घुसने ही नहीं देते।  इनमें  रोहिग्या बांग्लादेसी  आदि शामिल है। 

 

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि  भारत में बहुसंख्यक हिन्दूओं के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया बंद होना चाहिए।  जब सभी को  संविधान में  समान अधिकार हैतो अल्पसंख्यक - बहुसंख्यक के अधिकारों में पक्षपात क्यों ! देश - हित , एकता अखंडता व् सभी धर्म के नागरिकों के हितों के लिए  में इसका निदान जरूरी है। देखें केंद्र व्  सर्वोच्च न्यायपलिका इस पर क्या निर्णय लेती है 

 

जय हिन्द! जय भारत!  

 

 

 

 

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