11.12.16

डीमॉनेटाइजेशन का निर्णय

   डीमॉनेटाइजेशन (Demonetisation)(विमुद्रीकरण अथवा  नोटबंदी )के निर्णय विचार करने से पहले हम देश की आजादी के बाद लिए गये कुछ एक निंर्णयों पर प्रकाश डालते है। जिनमें से कुछ सफल रहे, कुछ विवादास्पद   रहेकुछ का नतीजा सिफर अर्थात ठन-ठन गोपाल रहा। किसी-किसी निर्णय में देश की जनता को जान-माल के साथ-साथ काफी परेशानी उठानी पड़ी।
      देश को गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए उठाये गये कदम। राजीव गांधी की कम्प्यूटर क्रांति। जनता पार्टी के समय रेडियों, TV के लाइसेंस समाप्त करना, अटल जी के समय उपभोगता की मांग पर रसोई गैस के कनेक्शन देना आदि- आदि जहाँ कुछ सफल निर्णय के उदाहरण है, वहीं कुछ विवादास्पद निर्णय  भी रहे जैसे देश में आपातकाल लागू करने करना, व्यापारियों, नेताओं, पत्रकार, वकील, अध्यापक आदि को आपातकाल के समय सरकार का विरोध  करने पर जेलों में नजरबंद करना। जबरन नसबंदीआपातकाल के समय 50 वर्ष की आयु  में  युवाओं की रोजगार देने के नाम पर सरकारी कर्मचारियों का जबरन रिटायमेंटआदि-आदि। 
  सरकार का डीमॉनेटाइजेशन निर्णय कैसा रहा इसका मूल्यांकन अभी से करना जल्दबाजी होगी परन्तु इसके दो उद्देश्य एकदम साफ है - पहला देश के भीतर से अघोषित आय (जिस पर टैक्स न दिया गया हो) अर्थात काला धन उजागर कर उसे समाप्प्त करना। दूसरा जाली करेंसी जो हमारी अर्थव्यवस्था को अंदर ही अंदर खोखला कर रही है, को समाप्त करना। 
   उपरोक्त दो को हम डीमॉनेटाइजेशन का मुख्य उत्पाद (Main Product) का कह सकते है। इसमें सरकार कितनी सफल होगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा परन्तु आज  डीमॉनेटाइजेशन के कुछ उप-उत्पाद ( Sub-Product) जरूर सामने आ रहें हैं।ठीक उसी तरह जिस तरह गन्ने का मुख्य उत्पाद चीनी (शक्कर) है, परन्तु उप उत्पाद के रूप में शीरा, खोई, बिजली उत्पादन, एथनॉल आदि के रूप में बहुत कुछ मिल जाता है। जो गन्ने की कीमत में कई गुना वृद्धि कर देता है। 
 खैर छोड़िये ! अब डीमॉनेटाइजेशन के उप-उत्पाद पर आते है, जो मीडिया में रह-रह कर उछल रहें है -
  डीमॉनेटाइजेशन से -
- कैशलेश इकोनॉमी को प्रोत्साहन।
- देश में नयी ब्रांडिड करेंसी का आगमन।   
- कश्मीर में पत्थरबाजी पर लगाम। 
- नक्सलवादियों का भारी संख्या में आत्मसमर्पण। 
-  क्राइम ग्राफ में कमी। 
- विवाह आदि में फजूल खर्ची पर रोक। 
- जनता का अधिक बचत पर जोर।
- कुछ राजनैतिक पार्टियों का भ्रष्टाचार का मुद्दा अपहृत हुआ।   
  आदि-आदि ।

जिस प्रकार किसी उद्योग से लाभ और दोष दोनों होते है उसी प्रकार डीमॉनेटाइजेशन से कुछ लाभ के साथ-साथ हानि भी हो रहीं है। 
  -डीमॉनेटाइजेशन से 
-  कैश क्रंच से व्यापार पर विपरीत प्रभाव 
- किसान, कृषि पर कुप्रभाव 
- रोजगार के अवसर कम हुए। 
-  अव्यवस्था से नागरिकों को मानसिक यंत्रणा, तनाव। 
- नोटबंदी के सदमें में या बैंक की लाइनों की अफरा-तफरी में कुछ लोगों की जान-माल की हानि।
 निष्कर्ष रूप में हम कह सकते है कि डीमॉनेटाइजेशन का निर्णय एकदम सही है, देश की जनता सरकार के साथ है। इसी लिए वह शांति से बैकों की लाइनों लगी है। कैश से खाली ATM, बैंकों की ओर ऐसे देख रही है जैसे भूख से बिलबिलाता बच्चा माँ को दूध की उम्मीद में टकटकी लगाकर देखता है।
  आज 33 दिन से ऊपर बीत जाने पर भी जिस प्रकार देश में कैश की भयंकर कमी है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि डीमॉनेटाइजेशन के निर्णय को सही ढंग से लागू नहीं किया गया। कैश की कमी में लोगो का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है 
 सरकार को जनता के मनोबल में वृद्धि करने के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए:-
बैकों में बंद नोट जमा करने की अंतिम समय सीमा 30 Dec.16 है व् RBI में जमा करने की समय सीमा 31 March, 17, को मीडिया के सभी माध्यमों का प्रयोग करते हुए प्रचारित करना चाहिए सभी बैकों में इस घोषणा का बैनर लगा हो।
- बैंकों की अव्यवस्था को देखते हुए बैकों में बंद नोट जमा कराने के समय सीमा को कम से कम 31 Jan, 17 तक बढ़ाये जाने की तुरन्त आवश्यकता है। ताकि जो किसी कारणवशबंद नोट जमा नहीं करा सके उनके मानसिक तनाव को कम किया जा सके। 
-  विदेशी मुद्रा की तरह घर में कैश रखने या घर से बाहर करेंसी लाने या ले जाने की सीमा निर्धारित कर दी जाये। ताकि तलासी में दुरूपयोग न हो 
- नोटबन्दी के चलते जिन लोगों को जान-माल से हाथ धोना पड़ा है उन्हें उत्तर-प्रदेश सरकार की तरह कुछ अनुग्रह राशि प्रधान की जानी चाहिए। 
विपक्ष लोकतंत्र में एक प्रहरी का काम करता है, उससे बातचीत कर विश्वास  में लिया जाना चाहिए।  जनता सरकार के हर कदम के साथ है जनता को भी लगना चाहिए कि सरकार भी उसके साथ है    





  






27.11.16

दिल्ली -हरिद्वार इंटरसिटी (अनारक्षित) एक्सप्रेस

सेवा में ,
माननीय श्री सुरेश प्रभु 
रेल मंत्री ,
नयी दिल्ली  
विषय- नयी ट्रेन दिल्ली-हरिद्वार इंटरसिटी (अनारक्षित) एक्सप्रेस चलाने के लिए अनुरोध  
 महोदय,

 दिल्ली व् उसके आस-पास से हजारों की संख्या में यात्री विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों जैसे मुंडन, अस्थि विसर्जन, गंगा स्नान आदि के लिए हरिद्वार आते-जाते है। ज्यादातर यात्रियों का आकस्मिक यात्रा का कार्यक्रम बनता है। दिल्ली-हरिद्वार रेल मार्ग पर यात्रियों के भारी दबाव के चलते अधिकतर यात्री आरक्षण न मिलने के कारण अनारक्षित टिकट पर यात्रा करते है।
 जैसा कि आप जानते ही है कि सुबह के समय दिल्ली से हरिद्वार के लिए चलने वाली सभी एक्सप्रेस गाड़ियां रिजर्व्ड केटेगिरी व् लंबी दूरी की होती है। उनमें से एक गाड़ी योगा एक्सप्रेस अहमदाबाद-हरिद्वार (19031) भी है। इस गाड़ी में जनरल कोच, यात्रियों के संख्या को देखते हुए नाकाफी है। सभी कोच स्लीपर होने के कारण दिल्ली के यात्रियों के लिए सीटों का रिजर्वेशन भी कम ही हो पाता है। आपसे निम्न अनुरोध है- 
1-  गाड़ी संख्या 19031 में दिल्ली से हरिद्वार तक जरनल कोचों के अलावा कम से कम चार रिजर्व कोचों को दिल्ली हरिद्वार के बीच अनारक्षित कोच में परिवर्तित कर अनारक्षित टिकट पर यात्रियों को  यात्रा करने की अनुमति प्रदान के जाये।  जिसकी घोषणा स्टेशन पर की जाए ताकि यात्रियों को कोई असुविधा न हो। रेलवे चाहे तो आरक्षित कोचों में दिल्ली हरिद्वार के बीच में अनारक्षित टिकटों पर यात्रा  करने पर 20 रूपये का शुल्क लेकर यात्रा की अनुमति प्रदान कर सकता है।  

  2-     दूसरे वर्तमान में सुबह दिल्ली से हरिद्वार के लिए वाया मेरठ , मुजफ्फरनगर, टपरी (सहारनपुर) कोई भी अनारक्षित इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं है। यात्रियों की भारी संख्या को देखते हुए मंत्री महोदय से अनुरोध है कि  दिल्ली-हरिद्वार के बीच  अनारक्षित इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन सुबह दिल्ली से लगभग पाँच बजे शुरू करने की कृपा करे ।

3-     इससे दिल्ली, दिल्ली-शाहदरा, गाजियाबाद, मोदीनगर, मेरठ, खतौली, मुजफ्फनगर, देवबंद, टपरी, रुड़की आदि की ओर के यात्रियों को भारी लाभ होगा। एक्सप्रेस ट्रेन में एक पैर पर यात्रा करने की तकलीफ से छूटकारा मिलेगा। रेलवे की यात्री फ्रेंडली इमेज भी बनेगी। हरिद्वार-दिल्ली इंटरसिटी ( अनारक्षित  एक्सप्रेस को हरिद्वार से शाम 4-5 PM के बीच दिल्ली के लिए रवाना किया जाये। इससे यात्री अपने दिन भर के  धार्मिक अनुष्ठान कर दिल्ली  वापस आ सकते है।  

आशा है मंत्री जी अवश्य ही उपरोक्त सुझावों पर ध्यान देंगें। 

धन्यवाद   






8.10.16

सर्जिकल स्ट्राइक का पोस्ट मोर्टम

 इंडियन आर्मी के सम्मान का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों के दिलों की धड़कनों में दिन-रात दौड़ती है। युद्ध काल के अतिरिक्त शांति काल में  किसी प्राकृतिक आपदा  बाढ़ , भूकंप  आदि  के समय भारतीय सेना के जवान ईश्वरीय दूत की तरह हमारे बीच हाजिर होकर, हमारे जान-माल की रक्षा  के साथ-साथ  गिरते मनोबल  बढ़ाने  को  बढ़ाते है। साम्प्रदायिक  तनाव के समय  आम नागरिक सेना की तैनाती होते ही अपने को सुरक्षित अनुभव करने लगता है। भारतीय फ़ौज की एक हमदर्द वाली अंतर्राष्ट्रीय  छवि किसी से छुपी नहीं।  
 हमारे लिए यह भी  गर्व का विषय है कि पाकिस्तान  जैसे  देश  की तरह   भारतीय सेना की कभी भी कोई भी राजनैतिक मह्त्वकांशा  नहीं रही व्  सफल लोकतंत्र को फलने-फूलने दिया। सेना ने पूरे  देश को एक  सूत्र में बांध रखा है।  यही कारण  है जब भी सेना  का  कोई जवान आतंकियों का मुकाबला करते हुए  शहीद होता है तो एक सौ पच्चीस करोड़  भारतीयों का दिल रो उठता है । भारतीय जनता  अपनी सेना के  देवदूतों को यूं अकारण ही शहीद होते नहीं देख सकती ।  उड़ी  हमले में सेना की जवानों की शहादत ने देश की जनता में रोष की लहर  पैदा कर दी थी।  
 परन्तु  जिस प्रकार सेना के  बहादुर जवानों ने  POK  में  आतंकी लांच पैड पर सर्जिकल स्ट्राइक कर , उन्हें नष्ट किया है  उससे हर भारतीय का सीना फूल कर छत्तीस  इंच का हो गया है। इसमें जहां सेना के जवानों का कमाल है,  वहीं इसका श्रेय देश के वतर्मान राजनैतिक नेतृत्व को भी जाता हैं। एक ओर जहाँ  देश की जनता सेना व्  वर्तमान राजनैतिक  नेतृत्व साथ है , वहीं कुछ नेताओं को इस सर्जिकल स्ट्राइक से अपनी  राजनैतिक जमीन  हिलती नजर आ रही है।  इसी लिए वो मीडिया में सबूत  मांग रहें है,  कुछ नेता दलाली जैसे  शब्दों का प्रयोग कर जनता  के दिलों को दुखा, क्रोध को  बढा  रहें है। सर्जिकल स्ट्राइक का पोस्ट मोर्टेम करने के लिए सबूत  मांगना कुछ  नेताओं  का  कुवे का  मेंढ़क  होना  दर्शाता है।  
हाथ कंगन को आरसी क्या , पढ़े लिखे को  फ़ारसी क्या , की तरह बौखलाए पाकिस्तान, POK  में होते प्रदर्शनों व्   विश्व  में मिले समर्थन से सहज ही अनुमान  लगाया जा सकता है कि  हमारी बहादुर सेना को  सर्जिकल स्ट्राइक में  शत प्रतिशत  सफलता मिली है, व् इस बार तीर सही निशाने पर लगा है 

 सर्जिकल स्ट्राइक  के बाद  एक सौ पच्चीस करोड़ भारतीयों की भावना  देखते हुए अब समय आ गया है कि अब जम्मू एंड कश्मीर में  भी कुछ छोटे-छोटे सुधार किये  जायें ,जो सर्जिकल स्ट्राइक  जैसे  हालात से निपटने में सहायक  होंगें  वहां की महिलाओं व् उनके बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जाएं।  राज्य से  बाहर विवाहित महिलाओं व्  उनके परिवार व्  बच्चों की समस्या पर गौर किया जाये , राज्य में दशकों से  रह रहे लोगों को  स्थानीय निकाय के  चुनाव में  वोटिंग का अधिकार दिया जाए।  राज्य  विधान सभा की सीटों का  जनसख्या के हिसाब से पुनः निर्धारण किया जाए।  जम्मू के लोगों की नाराजगी दूर की जाए। किसी रेखा को मिटाये  जिस प्रकार बराबर में  बड़ी  रेखा  खींचकर  छोटा किया जा सकता है , ठीक उसी प्रकार सहमति से  धारा 370  को  समाप्त  न  कर , नयी धारा जोड़कर , राज्य के  भटके लोगों को देश की मुख्य धारा में लाया जाए।  ऐसा करना सांप भी मर जाए और  लाठी भी न टूटे वाला कदम  होगा   रोजगार की  दृष्टि से जम्मू एंड कश्मीर उधोग धंधों  को किस प्रकार  बढ़ावा दिया जाये पर  विचार कर , ठोस कदम  उठाया जाए। 
जयहिंद जय भारत !

21.8.16

अल्पसंख्यक कौन ??

"सामाजिक नियम फिजिक्स अथवा मैथ्स की तरह स्थायी नहीं होते। इसके मूल्यों व् नियमों में समयस्थान आदि के अनुसार निरंतर परिवर्तन होता रहता है। समयानुकूल उचित परिवर्तन ही समाज को जीवंत बनाता है।
1947 में देश का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ। कुछ दलों के नेताओं ने  सत्ता में रहने के लिए 127 करोड़ टीम इंडिया को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक में बाँट दिया। अब प्रश्न यह है कि अल्पसंख्यक कौन है ?  मन में ढेरों प्रश्न है। देश में अल्पसंख्यक घोषित करने के क्या मापदण्ड हैइसकी क्या परिभाषा हैसीमापार से आया घुसपैठिया जो उस पार  बहुसंख्यक है ,सीमा पर करते ही कैसे अल्पसंख्यक हो जाता है ? अल्पसंख्यक शब्द आज एक धर्म विशेष का पर्यायवाची शब्द बन कर रह गया है
मजेदार बात यह है कि सरकार व् मीडिया में डिबेट के समय अन्य अल्पसंख्यक को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता ! मीडिया TRP के चक्कर में पक्षपात सा करता नजर आता है सभी घोषित अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर केवल एक वर्ग सभी अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करता नजर आता है।
हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति में शायद ही अल्पसंख्यक का कहीं प्रयोग हुआ हो। जैसा कि  हम सब ही जानते है कि 1977 की जनता क्रांति ने केंद्र में एक पार्टी का एकाधिकार खत्म कर दिया। तब से अल्पसंख्यक वोट को लेकर  जोरदार बयानबाजी व् बहस होनी शरू होने लगी है । MY, DM , DY जैसे समीकरणों को लेकर चुनाव लड़ा जाता है । समान अधिकार प्राप्त भारत के सभी नागरिकों पर जान न देकर कुछ नेता तो सत्ता सुख की खातिर अल्पसंख्यक  शब्द को एक ढाल की तरह इस्तेमाल करते है। वैसे सभी जानते है हाथी के दांत खाने के कुछ और होते है और दिखने के कुछ और !   
 अल्प + संख्यक दो शब्दों से मिलकर "अल्पंख्यक" बना है।  अल्प  का अर्थ कम  व् संख्यक से आशय संख्या से है। अर्थात जिसकी संख्या कम हो वो अल्पसंख्यक । परन्तु विभिन्न धर्मों में  जनसख्या अनुपात कितना होइसकी कोई परिभाषा नहीं है। अर्थात जनसंख्या अनुपात, कुल जनसख्या का 8%, 2542% या 60%, 70% या 100 % ,कितना इसकी कोई परिभाषा नहीं है। 
अंतरराष्ट्रीय नियमोंपरम्पराओंमान्यताओं के अनुसार किसी धार्मिक समूह को अल्पसंख्यक घोषित करते समय निम्न मापदंड होते है -
अल्पसंख्यक धर्म के अनुयाइयों की जनसख्या-अनुपात कुल जनसख्या का 8 % से कम होना चाहिए अर्थात 8% या उससे अधिक की जनसख्या अनुपात वाले धार्मिक समूह को अल्पसंख्यक केटेगिरी में नहीं रखा सकता।"
देश में  इस समय  धर्मों के अनुयाइयों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है :- 
  1- मुस्लिम
2- ईसाई
3- बौध्ध
   4- -सिख,
   5- जैन 
   6- पारसी 
  यद्यपि भारत में यहूदी धर्म के अनुयाइयों का अनुपात भारत की कुल जनसख्या से काफी कम है ,को अल्पसंख्यक नहीं माना जाता। शायद उनका चुनावी वोट कम है ,इसी लिए उनको  उपरोक्त ग्रुप में नहीं रखा गया। भारत में अल्पसंख्यकों को  विशेषाधिकार  प्राप्त है जिनमें सरकारी नौकरियों में 5% आरक्षण भी  शामिल है 
आज जिस प्रकार से रोजगारशिक्षा  व् विशेषकर कुछ राज्यों में सुरक्षा कारणों  से लोगों का  लगातार पलायन हो रहा हैइससे देश के कई राज्यों जिलों कस्बों आदि में बहुसंख्यक जनसख्या अनुपात में  बड़ा बदलाव आ गया है व् उनकों वहां पर अल्पसंख्यक कहा जा सकता है। जिसमें उनकी सुरक्षा,  रोजगार , धार्मिक आजादी  पर उचित ध्यान  देने की जरूरत है। 
धार्मिक पर्व स्वछंद रूप से मनाने की  समस्या पैदा हो रहीं है। पश्चिम बंगाल इसका जीता जागता उदाहरण है।  
बहुसंख्यक वर्ग को समझ में नहीं आ रहा कि उसे अल्पसंख्यक माना जाए या बहुसंख्यक।
 उत्तर प्रदेश, बिहार, आसाम, J & K  राज्य   के कुछ  जिलों में बहुसंख्यक  जनसख्या अनुपात में बदल गया है।  वहां राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक घोषित वर्ग को, क्षेत्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है  ऐसे में उनके हितों की रक्षा करनी जरूरी है  
   शामली के कैराना से सुरक्षा के कारण पलायन , कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का पलायन इसके ज्वलंत उदाहरण है।   मजेदार बात यह है कश्मीर में ६८% मुस्लिम होने के बावजूद अपने को अल्पसंख्यक घोषित कर अल्पसंख्यकों को मिंलने वाली  छात्र वृत्ति ले रहें है। इसी तरह का वाद माननीय सुप्रीम कोर्ट में चल भी रहा है।   यह तो यही बात हुई अंधा बनते रेवड़ी फिरी फिरी अपनों को दे ।
 देश में घोषित अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक अनुपात देख आप ज़रा सोचिये कौन बहुसंख्यक है ? स्पष्ट है जनसख्या अनुपात में  सुरक्षा व् अन्य कारणों से पलायन के कारण अल्पसंख्यक व् बहुसंख्यक का घोषित करने का कोई भी मापदंड स्थाई नहीं है। यह निरंतर चलने वाली प्रकिर्या है, तथा हर दस वर्ष बाद होने वाली जनगणना के साथ ही क्षेत्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक घोषित करने का प्रावधान  भी  किया जाना चाहिए ताकि उसी के अनुसार सभी के रोजगार , सुरक्षा , धार्मिक आजादी की नीति बनायी जा सके 
यदि नेता वास्तव में समान अधिकार प्राप्त  सभी  भारतीयों का विकास करना चाहते है तो अल्पसंख्यक व् बहुसंख्यक  के नाम पर फूट  डालने से बाज आये। 
यदि चुनावी मजबूरी के कारण ऐसा करना जरूरी लगे तो फिर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आंकड़े राष्ट्रीय जनसख्या स्तर के साथ-साथ राज्यजिलातहसील आदि के आधार पर एकत्रित किये जाने चाहिए। और उसी  जनसंख्या अनुपात के आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की श्रेणी बननी चाहिए  ताकि सभी भागों के अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक  विकास हो।  सभी भारतीयों की शिक्षाचिकित्सा रोजगार सुरक्षा की गारंटी हो। सुरक्षा के अभाव में किसी भी राज्य जिले या तहसील स्तर के सख्या अनुपात में अंतर होने पर क्षेत्रीय अल्पसंख्यक का कैराना आदि की तरह पलायन न हो  एक समान विकास हो।  
आइये मिलकर विचार करें । अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के नाम पर डिवाइड एंड रूल करने वाले नेताओं का भंडा फोड़ करे ।  विकास की राजनीती करने वाले नेताओं को आगे लाएं। तभी सच्चे अर्थों में 127 करोड़ लोगों की टीम इंडिया की सही मायनों में जीत होगी । देश बढ़ेगा तो हम बढेंगे ।
जय हिन्द जय भारत ! 

24.7.16

अल्पसंख्यक - अग्रवाल समाज

अग्रवाल समाज का योगदान भारतीय समाज व् देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था में किसी से छुपा नहीं। यह समाज भारत के हर राज्यों में बसा है। साथ ही दुनिया की आर्थिक ताकत वाले देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड आदि में इसकी उपस्तिथि देखी जा सकती है। शिक्षा,चिकित्सा, रोजगार, धार्मिक कार्यों आदि में इस समाज का योगदान देखते ही बनता है। 
अग्रवाल समाज 18 गोत्रों का एक समूह है। गोत्र महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रो  नाम- 1-ऐरन 2-बंसल, 3- बिंदल ,4- भन्दल ,5- धारण , 6- गर्ग , 7- गोयल , 8- गोयन,  9- जिंदल , 10- कंसल ,11- कुच्छल , 12- मधुकुल , 13- मंगल , 14- मित्तल  ,15- नागल , 16—सिंघल , 17- तायल ,18- तिंगल पर आधारित है।   
127 करोड़ की भारत की जनसंख्या में इस समाज की जनसख्या का हिस्सा एक प्रतिशत से भी क्म है। प्रत्येक दस वर्ष में एक बार होने वाली जनगणना में अग्रवाल समाज के अलग से आंकड़े इकट्ठे नहीं किये जाते। यही कारण है, इस समाज की सही तस्वीर देश-दुनिया के सामने नहीं आ पाती।  
अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार किसी देश में यदि क्सिी वर्ग/धर्म की आबादी 8 % या उससे अधिक हो तो उसे अल्पसंख्यक नहीं माना जाता। परन्तु भारत में अग्रवाल समाज की जनसख्या देश की कुल जनसख्या का १% से भी कम है, को अल्पसंख्यक वर्ग में न रखबहुसख्यक वर्ग में रखा जाता है।
 जैसा कि मालूम है कि भारत में इस समय जातियों-धर्म समूहों को अल्पसंख्यक की श्रेणी में रखा गया है  1- मुस्लिम, 2--ईसाई, 3--बौध्ध  4- सिख  5- जैन, 6--पारसी।  यह बात अलग है जब अल्पसंख्यक की बात होती है तो केवल मुस्लिम वर्ग ही मीडिया में अल्पसंख्यकों का नेतृत्व करता नजर आता है। क्या आपने कभी किसी जैन, बौध्ध, सिख आदि को T.V. की किसी डिबेट में अल्पसंख्यकों  के ऊपर होने वाली बहस रूप में देखा हैयद्यपि अन्य अल्पसंख्यकों की जनसख्या  मुस्लिम आबादी के राष्ट्रीय स्तर पर २५% से काफी कम है। 
  यदि राज्य स्तर पर U.P जैसे राज्य को देखा जाए तो लगभग 20 से ज्यादा जिलों में मुस्लिम आबादी 40% या उससे भी अधिक है, इसमें मुजफ्फरनगर जिला भी शामिल है।
अतः स्पष्ट है 1% से कम का जनसंख्या वाले अग्रवाल समाज को भी जैन धर्म की ही तरह अप्लसंख्यक वर्ग में शामिल किया जाना चाहिए।  
अग्रवाल समाज इस समय गम्भीर संकट के दौर से गुजर रहा है। इस वर्ग में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। बेरोजगारी के कारण विवाह-शादी की समस्या उत्प्न्न हो रही है। दहेज़ की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया  है। शिक्षा,चिकित्सा के लिए संघर्ष करना पड रहा है। गांव- देहात,कस्बों से अग्रवाल समाज का सुरक्षा के अभाव में पलायन आम बात है। कैराना हो या अन्य जगह इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है
 सरकार को वोट बैंक की  राजनीति  से हटकर  इस समाज की ओर ध्यान देना चाहिए।  साथ ही अग्रवाल समाज के प्रबुद्ध जनों को भी समाज के उत्थान के लिए अपना रोजगार , शिक्षा , चिकित्सा व् सामाजिक कार्यों जैसे विवाह शादी में यथा संभव योगदान देना  चाहिए। यही चंद प्रयास महाराजा अग्रसेन की विरासत को बचाने में मील का पत्थर साबित होंगें। 
 - सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु

मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् 

 शान्तिः शान्तिः शान्तिः 

आशा है   “सबका साथ सबका विकास के मूल मन्त्र वाली केंद्र सरकार अग्रवाल समाज की समस्या की ओर ध्यान देने की कृपा करेगी। जयहिंद !






PF , ESIC भुगतान ऑफ लाइन मोड़ - RTGS /NEFT के रूप में

 PF ,  ESIC  भुगतान ऑफ लाइन मोड़ - RTGS /NEFT के रूप में  व्यापारिक / गैर व्यापरिक संस्थानों , कंपनी , फैक्ट्री  आदि को हर  माह  अपनी  वैधानि...