1.9.22

अखबार में नाम छपा- पद्मश्री की डिमांड !!

 अखबार में नाम छपापद्मश्री की डिमांड !!

 

अस्सी-नब्बे  के दशक में अखबार में नाम  छपने की बात , किसी  दफ्तर में नाम छपने से कम न थी।   उन दिनों  अखबार में नाम   छपवाने के लिए बड़े पापड़ बेलने पड़ते थे।  लोग तरह-तरह के जुगाड़ ,जुगत लगाते    न्यूज पेपर  में नाम छपने पर   लोग न केवल अखबारों की कॉपी/कटिंग प्रमाण पत्र के रूप में अपने पास संभाल कर रखते वरन यार दोस्तों में शान से  दिखाते ।  अखबार में नाम छपने की  खुशी में आस-पड़ोस  में जलेबिया बांटते ।

उदाहरण  के लिए लगभग  39  साल पहले एक पड़ोसी का नाम अखबार में छपा  -  24 Sep. 1983 ,को  सांध्य  टाइम्स -"लोग कहते है " स्तम्भ में- “अखबार में नाम छपा जलेबियाँ बंटी “ शीर्षक से  इसे  शेयर कियाजिसकी कटिंग आज भी किसी फ़ाइल में शायद दबी पडी हो  

 अस्सी के  दशक में आये दिन खबरे उछलती रहती थी कि अखबार में     नाम  आने के लिए ,  इसी कदर दीवाने थे कि  उन दिनों इसी लिए  एक लड़की ने ट्रेन से  कटकर  आत्म ह्त्या कर ली  

अस्सी के   दशक में अखबार में नाम छपना,  रेडियों के  फरमाइशी  फिलमी गीतों के कार्यक्रम के  लिए  पोस्ट कार्ड भेजना  , फरमाइशी  कार्यक्रम में   नाम सुनना रेडियों पर  पसंद का फ़िल्मी गीत  बजवाना ,  युवा-युवती,  सुन्दर-सुंदरियों का होरो-हीरोइन के प्रति  आकर्षण होना  आदि-आदि  उस दौर के युवा की आदतों में शुमार था  

युवा- युवती का  फ़िल्मी हीरो -हीरोइन से प्रभावित हो घर से भाग जाना , हीरों-हीरोइन  से  मिलने मुंबई कूच  कर जाना ,  आज के फेसबुकिया प्यार की तरह घर से भाग जाना ,  फ़िल्मी हीरो -होरोइन के बंगले  मुंबई में चक्कर काटना या  पागल बन मजनू सा बन भी  अपनी  तरह की एक समस्या थी। 

  कहने का तात्पर्य यह  उस  दशक में टीन एजर्स  जवानी की दहलीज आते ही  उस हर चीज का दीवाना था, जिसमें ग्लेमर होनाम हो , प्रसिध्धि हो,  इसके लिए  चाहे वह  अखबार  हो ,  रेडियों हो , TV हो  या  फिल्म हो   

परन्तु जैसे-जैसे  नेट की ग्लोबल वर्ल्ड ने अंगड़ाई ली नेटिजन  युवा मन की  देशी अखबाररेडियों, TV , फ़िल्मी हीरो-हीरोइन आदि में रूचि कम होती  चली  गयी,  वह  वर्चुअल दुनिया के सोशल प्लेटफॉर्म -  जैसे  ऑरकुट फेसबुकइंस्टाग्राम ,  ब्लॉगिंगट्विटर  से सफर को आगे बढ़ाते हुए टिकटोक यूट्यूब आदि  वर्चुअल  सोशल वर्ल्ड प्लेट फॉर्म पर अटखेलियां करने लगा  

  निःसन्देह इस नए  मीडिया प्लेटफॉर्म ने गुमनाम  लाखों प्रतिभाओं को देशदुनिया में  नाम ,पहचान व् प्रसिध्दि दी   जैसे हाल ही में वर्तमान में  जीतू -अभिलिप्सा का नए अंदाज में गाया - शिव  स्त्रोत -  "हर हर शंभू " संस्कृत शब्दों का सही उच्चारण  , हर सनातनी व् नेटीजनों के कानों  में गूँज रहा है ,  मोबाइल की घण्टी  में घनघना  रहा है ।यू ट्यूब पर हजारों की संख्या में सनातनी भजन , करोड़ों को मन की शांति प्रदान कर  रहें है   

 मथुरा -वृंदावन,   राधे-राधे भजन सभी  कानों में गूँजमन को नई ऊर्जा उत्तेजना दे रहें है   यह सब संभव  है सोशल मीडिया के कमाल की वजह से   भला मूंगफली  बेचने वाले भुवन ने कब सोचा  था कि  उसके   - काचा बादाम पर कब-कहाँ -कैसे   बड़े बड़े   कोरियोग्राफर  थिरकेगें।  

 अरब कंट्री के गायक का -सारे जहाँ से अच्छा…… व् जन गण मन अधिनायक जय हेका प्रयास हजारों   नेटीजनों को भा रहा है।  

परन्तु इतना वर्चुयल  सोशल प्लेटफार्म आ जाने पर भी  , आज भी  न्यूज  पेपर्स का क्रेज है व् उसे  पढ़ने का अपना मजा है। न्यूज पेपर में खबरे एक स्थान पर कम समय में ,  कम खर्च  मेंविस्तार से जब  चाहें जहां चाहें  पढ़ने को मिलती है. उनको जहां  संभाल कर रखा जा सकता है, वहीं उद्धृत करने की आसानी होती है  

   आइये एक मजेदार उदाहरण से इसे समझते है -जब हम रेलवेबस या  भीड़ में या गावं देहात में न्यूज पेपर्स पढ़ते है तो लोगों की नजरें अनायास  ही अखबार पर  ही टिक जाती है।  जो आज भी न्यूज पेपर्स के प्रति लोगों की दीवानगी को  दर्शाता है। करोड़ों लाखों  पाठक न्यूज पेपर्स की खबरों व् एडिटोरियल में रूचि रखते है तथ्त्यपरक खबरों का संज्ञान लेते है। 

जैसे कि  आप  देखते ही है के आज  TV  न्यूज चैनलों ने   अपना  मुख्य कार्य न्यूज  दिखाना कम  कर दिया है , वो आजकल  न्यूज की बजाय एक  सहायक कार्य  जिसे डिबेट कहते है में लगे है उनकी स्तिथि  आये थे हरी भजन को ओटन  लगे कपास जैसी हो गयी है ,  जिस कारण  दर्शकों की रूचि  न्यूज चैनल में धीरे- धीरे रूचि कम हो रही है . 

 

खैर हम कहाँ TV  पर  आ गए !, तो यह अटल सत्य  है  कि  आज इतना सब सोशल मीडिया   आदि होने पर भी देसी  न्यूज पेपर्स का जलवा बरकरार है। यहाँ देशी न्यूज पेपर्स से तातपर्य  अपनी मातृ  भाषा में  प्रकाशित होने वाले अखबार से है।   

परन्तु यह भी कटु  सत्य है कि कुछ लोगों को घरेलू/ देशी  न्यूज पेपर्स घर की मुर्गी दाल की बराबर लगते है।  मतलब ये  लोग देसी  ठर्रे व् विदेशी  ठर्रे में भेद करते है  अर्थात  घर का जोगी जोगना , आन ( और) गांव का सिद्धः। 

 

यूं तो घरेलू न्यूज पेपर्स में आये दिन नेताघपने -घोटाले मंत्री-संतरी की अच्छी -बुरी खबर  छपती है, पर इसे  रोज का रूटीन समझ  नोटिस नहीं करते ,परन्तु यही खबर  किसी  विदेशी न्यूज  पेपर्स में छप जाये तो सोने पे सुहागा हो जाता है 

अभी हाल ही में  सुनने में आया है  दिल्ली सरकार के  मंत्री की विदेशी न्यूज पेपर्स में  झंडे गाढ़ती कोई खबर छपी है , इससे दिल्ली के  सर जी गद-गद  है  ,इलेक्टॉनिक  मीडिया में उसी खबर की  कटिंग को बार बार  आये दिन लहरा  रहें है , और  एक  बड़ी उपलब्धि के रूप में ऐसे पेश कर रहें है ,ऐसे कोई तीर मार लिया हो   

 मीडिया में कहते  नहीं  अघाते  -  विदेशी अखबार में खबर छपना आसान नहीं होता ! 

 परन्तु   लोगों को कहना  है - जंगल में मोर नाचा किसने देखा 

और तो और इसी विदेशी अखबार की खबर को आधार बना , सर जी  मंत्री  के लिए पद्म विभूषण की मांग की है     

सर जी की इसी अखबारी मनोदशा के आधार पर  कहा  जा सकता है  कि आज भरी -पूरी वर्चुयल सोशल मीडिया की दुनिया होने  के बावजूद   न्यूज पेपर्स का जलवा बरकरार है।

देखते जाइये अभी तो नेतागण विदेशी  न्यूज पेपर्स में नाम छपने पर  पद्म विभूषण की मांग कर रहें है।  क्या पता कल वो इसी को आधार बनाभारत रत्न की मांग करने लगें।  

 और इसी विदेशी  न्यूज़ पेपर की खबर को आधार बना महीनों से  घर बैठे  आंदोलनजीवी एक बार फिर अपनी-अपनी म्यान में से आंदोलन की तलवारें निकाल लें ! 

नॉट - कृपया अन्यथा न ले,   व्यंग्य है पढ़े , मुस्कराएं , दिल पर न ले , 

 

जय हिन्द जय भारत 

   

 

  

 

 

 

  

 

 

 


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