"समाज देश में राजनैतिक नियम फिजिक्स या गणित की तरह एक समान नहीं होते। यह नियम समय, स्थान, परिस्थिति अनुसार लगातार बदलते है ।
कुछ दलों के नेताओं ने सत्ता में रहने
के लिए 127 करोड़ टीम इंडिया को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक में बाँट दिया। अब प्रश्न
यह है कि अल्पसंख्यक कौन है ? मन में ढेरों प्रश्न है। देश में अल्पसंख्यक
घोषित करने के क्या मापदण्ड है? इसकी क्या परिभाषा है? सीमापार से आया घुसपैठिया
जो उस पार
बहुसंख्यक है ,सीमा पर करते ही कैसे अल्पसंख्यक हो जाता
है ? अल्पसंख्यक शब्द आज एक धर्म विशेष का पर्यायवाची शब्द बन कर रह
गया है?
मजेदार बात
यह है कि सरकार व् मीडिया में डिबेट के समय अन्य अल्पसंख्यक
को प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता ! मीडिया TRP के चक्कर में पक्षपात
सा करता नजर आता है ? सभी घोषित अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर केवल
एक वर्ग सभी अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करता नजर आता है।
हजारों वर्ष
पुरानी भारतीय संस्कृति में शायद ही अल्पसंख्यक का कहीं प्रयोग हुआ हो। जैसा कि हम सब ही
जानते है कि 1977 की जनता क्रांति ने केंद्र में
एक पार्टी का एकाधिकार खत्म कर दिया। तब से अल्पसंख्यक वोट को लेकर जोरदार बयानबाजी व् बहस होनी
शरू होने लगी है ।
MY, DM , DY जैसे समीकरणों को लेकर चुनाव लड़ा जाता है । समान अधिकार प्राप्त भारत के सभी नागरिकों पर जान न देकर कुछ नेता तो सत्ता सुख
की खातिर अल्पसंख्यक शब्द को एक ढाल की तरह इस्तेमाल करते है। वैसे सभी जानते है हाथी के दांत खाने
के कुछ और होते है और दिखने के कुछ और !
अल्प + संख्यक दो शब्दों से मिलकर "अल्पंख्यक" बना है।
अल्प का अर्थ कम व् संख्यक से आशय संख्या से
है। अर्थात जिसकी संख्या कम हो वो अल्पसंख्यक । परन्तु विभिन्न धर्मों में जनसख्या अनुपात कितना हो, इसकी कोई परिभाषा नहीं है। अर्थात जनसंख्या
अनुपात, कुल जनसख्या का 8%, 25% 42% या 60%, 70% या 100 % ,कितना ? इसकी कोई परिभाषा
नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय
नियमों, परम्पराओं, मान्यताओं के अनुसार किसी धार्मिक समूह को अल्पसंख्यक घोषित करते समय निम्न मापदंड
होते है -
" अल्पसंख्यक धर्म के अनुयाइयों की जनसख्या-अनुपात कुल जनसख्या का 8 % से कम होना चाहिए अर्थात 8% या उससे अधिक की जनसख्या अनुपात वाले धार्मिक समूह को अल्पसंख्यक “केटेगिरी” में नहीं रखा सकता।"
देश में
इस समय 6 धर्मों के
अनुयाइयों को अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है :-
1- मुस्लिम
2- ईसाई
3- बौध्ध,
4- -सिख,
5- जैन
6- पारसी
यद्यपि भारत
में यहूदी धर्म के अनुयाइयों का अनुपात भारत की कुल जनसख्या
से काफी कम है ,को अल्पसंख्यक नहीं माना जाता। शायद उनका चुनावी वोट कम है ,इसी लिए उनको उपरोक्त
ग्रुप में नहीं रखा गया। भारत में अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार प्राप्त है जिनमें
सरकारी नौकरियों में 5% आरक्षण भी शामिल है
आज जिस प्रकार
से रोजगार, शिक्षा व् विशेषकर कुछ राज्यों में सुरक्षा कारणों से लोगों
का लगातार पलायन हो रहा है, इससे देश के कई राज्यों , जिलों , कस्बों आदि
में बहुसंख्यक जनसख्या अनुपात में बड़ा बदलाव आ गया है व् उनकों वहां पर अल्पसंख्यक
कहा जा सकता है। जिसमें
उनकी सुरक्षा, रोजगार
, धार्मिक आजादी पर उचित ध्यान देने की जरूरत है।
धार्मिक
पर्व स्वछंद रूप से मनाने की समस्या पैदा हो रहीं है। पश्चिम बंगाल इसका
जीता जागता उदाहरण है।
बहुसंख्यक
वर्ग को समझ में नहीं आ रहा कि उसे अल्पसंख्यक माना जाए या बहुसंख्यक।
उत्तर प्रदेश,
बिहार, आसाम, J & K राज्य के कुछ जिलों
में बहुसंख्यक जनसख्या अनुपात में बदल
गया है। वहां राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक घोषित वर्ग को, क्षेत्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक है । ऐसे में उनके हितों की
रक्षा करनी जरूरी है ।
शामली के कैराना से सुरक्षा के कारण पलायन , कश्मीर से कश्मीरी
पंडितों का पलायन इसके ज्वलंत उदाहरण है। मजेदार बात यह है कश्मीर
में ६८% मुस्लिम होने के बावजूद अपने को अल्पसंख्यक घोषित कर अल्पसंख्यकों को
मिंलने वाली छात्र वृत्ति ले रहें है। इसी तरह का वाद माननीय सुप्रीम कोर्ट
में चल भी रहा है। यह तो यही बात हुई अंधा बनते रेवड़ी
फिरी फिरी अपनों को दे ।
देश में घोषित अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक अनुपात देख आप ज़रा सोचिये कौन बहुसंख्यक है ? स्पष्ट
है जनसख्या अनुपात में सुरक्षा व् अन्य कारणों से पलायन के
कारण अल्पसंख्यक व् बहुसंख्यक का घोषित करने का कोई भी मापदंड स्थाई नहीं
है। यह निरंतर
चलने वाली प्रकिर्या है, तथा हर दस वर्ष बाद होने वाली जनगणना के साथ ही क्षेत्रीय
स्तर पर अल्पसंख्यक- बहुसंख्यक घोषित करने का प्रावधान भी किया जाना चाहिए ताकि उसी के अनुसार सभी के
रोजगार , सुरक्षा , धार्मिक आजादी की नीति बनायी जा सके
यदि नेता
वास्तव में समान अधिकार प्राप्त सभी भारतीयों का विकास करना चाहते है तो अल्पसंख्यक
व् बहुसंख्यक के नाम पर फूट डालने से बाज आये।
यदि चुनावी
मजबूरी के कारण ऐसा करना जरूरी लगे तो फिर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आंकड़े राष्ट्रीय जनसख्या
स्तर के साथ-साथ राज्य, जिला, तहसील आदि के आधार पर एकत्रित किये जाने चाहिए। और उसी जनसंख्या अनुपात के आधार पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक
की श्रेणी बननी चाहिए ताकि सभी भागों के अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विकास हो। सभी भारतीयों की शिक्षा, चिकित्सा , रोजगार , सुरक्षा
की गारंटी हो। सुरक्षा के अभाव में किसी भी राज्य , जिले या
तहसील स्तर के सख्या अनुपात में अंतर होने पर क्षेत्रीय अल्पसंख्यक का कैराना आदि की तरह पलायन
न हो । एक समान विकास हो।
आइये मिलकर
विचार करें । अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के नाम पर डिवाइड एंड रूल करने वाले नेताओं का भंडा फोड़ करे
। विकास की राजनीती करने वाले नेताओं को आगे लाएं। तभी सच्चे अर्थों में 127 करोड़ लोगों की टीम इंडिया की सही मायनों में जीत होगी । देश बढ़ेगा तो हम बढेंगे ।
जय हिन्द , जय भारत
!