आज सभी मोसम का मजा ले रहे थे । हंशी मजाक के बीच आज हर आदमी अपने को अल्पसंख्यक सिद्ध करने पर तुला था । ध्वनी मत से एक मूंछ वाले को अल्पसंख्यक घोषित कर , सभा का संचालनकर्ता नियुक्त किया गया । बस फिर क्या था हर कोई अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने पर तुला था ।दाढ़ी वाले का अपना तर्क था , चश्मे वाले का अपना । पाजामा वाले का अपना तो पेंट वाले का अपना ।हार्ट वाले का कुछ तो सुगर वाले व बी पि वाले का कुछ । जितने मुंह उतनी बात । सबका अपना ढपली अपना राग । सभी को अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने के होड़ लगी थी ।बहती गंगा में सभी हाथ धोना चाहते थे । आखिर राम नाम की लुट है लूटी जा सो लूट वाली बात जो थी । कोई बोला सरकार अल्पसंखौ को सुविधा देती हें तो में क्यों न लूँ । अनपढ़ बोला भाई में तो काला अक्सर भेंश बराबर हूँ इसका अस्ली हकदार में ही हूँ ।आप सभी पढ़ें लिखें हें तो भला ये बाजी मेरे हाथ क्यों न लगे । फिर भला मुफ्त का चन्दन घिस मेरे भाई में क्यों न ल्गांव।
स्तिथि बड़ी विचित्र थी । एक गाँव वाला शहरी से अड़ गया की अल्पसंख्यक का तमगा उसे ही मिलना चाहिय ।
भेंश वाला , बकरी वाला , गाय वाला मुर्गी वाला अपनी ही दलीलें दे रहा था । काला गोरे पर ऑंखें तरेरने लगा , भला वह क्यों इस केटेगिरी का हकदार नहीं हो सकता ।
अपील दलील का दौर चला , सब्जी वाला फल वाले पर कपडे वाला रेडीमेड वाले पर हावी हो इस लुभावने लड्डू को लपकने को बेकरार था ।उधर मूंछ वाला अपनी मूंछों पर ताव दे अपने बालों को सहला रहा था ।पलड़ा सभी काभारी था । न जाने ऊंट किस करवट बेठ जाए । सभी इसी उधेड़ बुन में मगह्पच्ची के रहे थे । निर्णय हो तो केसे हो । कोन अल्पसंख्यक कोन बहुसंख्यक इसका फेशला करना बढ़ी टेढ़ी खीर थी ।सभी एक दुसरे का मुंह ताअक रहे थे । कोई भी फेशला करना टेढ़ी खीर थी । एक तरफ कुवा तो दूसरी तरफ खाई । किसी भी निर्णय से तिल का ताड़ , बात का बतंगड़ बनना लाजमी था । देने के लेने पड़ने का पुरा अंदेशा था। सभी बातें एक गंजा कान लगा कर सुन रहा था , उससे रहा न गया । सञ्चालन क्रता की इजाजत ले वह भी बिच में कूद पड़ा । लगता था मरे शेर की मुछ हर कोई उखाड़ना चाहता था । क्या करे क्या न कर स्थिति सांप व छुछुंदर वाली थी खाए तो जान जाए न खाए तो नामर्द कहलाये । मशला कश्मीर , राम मंदिर की तरह पेचीदा हो चला था जिसे कोई भी नहीं छओड़ना नहीं चाहता था । सभी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे । पूरा का पूरा विषय बदल चूका था । मुफ्त की मुर्गी भला कोअन छोड़ना चाहेगा ।
काफी माथा पची के बाद भी नतीजा जीरो । रिजल्ट वाही ढहाक के तिन पात । तभी पार्क में नेताजी नजर आये ।
सभी की उम्मीद उन्ही पर जा टिकी । नेताजी जी ने माजरा समझ पूछा की किसके कितने वोते हें तथा कोन वोटो को वोट बैंक में तब्दील कर सकता हें । नेताजी जी वोटो का गुना जमा कर एक उनमें के एक को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया । सभी नेताजी के अहसान मंद थे की आपने केसे समस्या का चुटकी बजा हल कर दिया । दूसरी तरफ हम वाद विवाद में पद अपना समय खराब कर रहे थे ।
नेता जी मन ही मन ऐसा महसूस कर रहे थे जेसे अन्धें के हाथों बटेर लग गयी हो । अँधा मरे या जवान हत्या से काम । हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा । आखिर सत्ता की कुनजी जो हाथ आ लगी थी ।
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