28.10.21

बृज के नंदलाला राधा के सांवरिया

बृज  के नंदलाला  राधा के सांवरिया 
सब दुःख दूर हुए जब तेरा नाम लिया 

जय श्री कृष्णा !

6.8.21

दिल्ली- PWD सड़कों बीच गढ्ढे ! बने एक समस्या !

दिल्ली  PWD  सड़कों बीच गढ्ढे ! बने एक समस्या ! लंबे समय से  मरम्मत के अभाव  में   दिल्ली- PWD   की सड़कों के बीच  जगह-जगह गहरे गढ्ढे बन गए  है। इससे सड़क पर  वाहन चालकों ,  विशेषकर  दुपहिया   चालकों  के   दुर्घटना का खतरा  हमेशा ही मंडराया रहता है।  

यदि  निष्पक्ष रूप से  विचार किया  जाये तो  आज के दिन दिल्ली  PWD  की सड़कों की स्तिथि  अन्य जगहों  की तुलना  में,  बहुत ही निम्नस्तरीय हो चली है  

उदाहरण के लिए जैसे यमुनापार के इलाकों में   विशेषकर  दिलशाद गार्डन ,  मंडोली रोड , रामनगर , शाहदरा , सीलमपुर,  कृष्णा नगर , लोनी रोड , बिहारी कोलोनी  से हसनपुर तक  ,  गाजीपुर रोड , विकास मार्ग,  भजनपुरा , गोकुलपुर आदि-आदि , में जगह-जगह सड़कों  के बीच में  गढ्ढों का एक जाल सा  बन गया है।   जो आये दिन दुर्घटना को न्योता दे रहा है  Ɩ

   अतः दिल्ली सरकार से इस सम्बन्ध में नम्र  निवेदन है  कि वाहन चालकों को दुर्घटना से  बचाने  व् सड़क पर  ट्रेफिक को  सुचारू रूप से चले के लिए ,  सभी दिल्ली  PWD  सड़कों के बीच में बने गढ्ढों को तुरंत  भरने की दिशा में  कोई ठोस  कार्य करना  चाहिये । सड़कों के बीच में बने गढ्ढों की सुचना हेतु ,  ट्रेफिक पुलिस की सहायता के साथ साथ इस काम में दिल्ली  सिविल डिफेंस की टीम को युद्धस्तर पर उतारा जा सकता है Ɩ 

 इस भी उल्लेखनीय है  कि  इस समय सिविल डिफेन्स की वर्क फ़ोर्स /टीम   दिल्ली सरकार के पास हजारों की संख्या में मौजूद है   

आशा हैदिल्ली सरकार इसे अन्यथा न ले ,  दिल्ली में PWD सड़कों के बीच  बने  गढ्ढों  के निदान के लिए  युद्धस्तर पर  अवश्य ही  समुचितठोस व्  तुरन्त  कदम उठाएगी।   

 

जय हिन्द जय भारत 

 

 

25.7.21

बचपन जो अब सपना लगता है

बचपन जो अब सपना लगता है 

बचपन गावं में गन्ने खेत में कान्छी (गन्ने का  बीज)  बोते , गेहूं  बोते  व् काटते  हुए खेतों में ही बीता।  उन दिनों  गावं में सुबह की सैरप्राणायम , योगा  का चलन या ऑप्शन  न था।  इसकी कमी  हम लोग खेत  में काम करके  व् सिर  पर चारे  की गठरी को खेत से घर तक  को लादकर  पूरी  करते थे।    

सर्दी में  हरे चारे के लिए  बोई गयी हरी-हरी  बरसीम के खेत में बिछी हरियाली चादर पर लुढ़ककर हम लोग  मकरासन आसन  की कमी  पूरा करते थे   खेतों में चारा  काटते समय कलाई की एक्सरसाइज भी  योगा में होने वाली  सूक्ष्म  एक्सरसाइज  की तरह हो जाती थी । शाम होने पर सुनसान  खेत में पक्षियों की कलरव की बीच ध्यान लगाना भी योगा की तरह  ध्यान का हिस्सा था। 

हाथ की  चारा मशीन से चारा काटने से  कंधे  की   एक्सरसाइज होने  से कंधे जाम  खतरा टला रहता था ।  खेत में भूख लगने पर  हरी  सलाद के रूप में  मटर के रंग-बिरंगे, नीले-गुलाबी  फूलों  के खेत में  जाकर ,  कच्ची मीठी मटर  सलाद की तरह खाई जाती थी ,   सरसों के पीले फूलों के बीच, सरसो  की मुलायम व् मीठी  डंठल  के सलाद  आज  के सलाद  से बढ़कर कुछ  और ही  था।  

  बचपन में गेहूं , चावल व् अन्य  अनाज, दूध, घीफल- सब्जी पर आत्मनिर्भरता कमाल भी की थी।   खेत से  बथुए को तोड़ गरमगरम बथुए के पराठे  , खेत में चने का साग, सोने सा खरा व्  मानों घर की मुर्गी दाल बराबर था। 

 तपती  दुपहरी  में आम के पेड़ों पर पकड़म-पकड़ाई व् अमरूद व् जामुन के पेड़ों पर उछलते-कूदते बिताना मानों किसी स्वर्ग से कम  न था। 

 स्कूली शिक्षा के साथ  घरेलू  कृषि  कार्य करना किसी  डबल इंजन की सरकार जैसे थे।  आम के आम  गुठली के दाम की तरह , एक पंथ दो काज थे   सुबह शाम  गाय  बछड़े संग  दूध  पीने  व् साथ में   म्याऊं-म्याऊं करती पालतू बिल्ली के मुहं में दूध की तेज धार मारआनंद का अनुभव करते थे । बिल्ली मौसी भी -"हक़ से मांगों"  की तरह  हमारे साथ  पूरा  आनंद लेती नजर आती थी   

  प्राइमरी  स्कूल के पीछे  एक लंबा चौड़ा  तालाब  था, जिसमें  दोपहर में  पशुओं की पूंछ पकड़ कर गहरे पानी में  हम तैरने  थे , आज भी वो दिन याद कर  दिल में सिहरन हो आती है

बड़े तालाब  में कमल के फूल तोड़ने के लिए केले के तने  की नाव  बनाकर उस पर  तैर , गहरे पानी से  कमल के फूल को  तोड़ना  व् उनकी  माला  बनाना सचमुच किसी सपने सा लगता है । 

बचपन मौज मस्ती काम-काज पढ़ाई- लिखाईघर-खेत, स्कूल कालेज , घास-फूंस की जिम्मेदारी में कब फुर्र हो गया  , पता ही न चला ।

 उन दिनों के  गावं  आज की तरह से नहीं  होते थे , बरसात में गावं के रास्ते  शहर से  पूरी तरह से कट  जाते थे, देर शाम , रात-बिरात गांव  में आना-जाना  सुरक्षा की  दृष्टि से सही न था  , सड़क बिजली न  थी , रात में चोरों  का डर था। 

पर आज के गांव   निश्चय ही बहुत  बदल गए है  , बिजली है, सड़क है, यातायात है , टॉयलेट की  सुविधा है गैस है , कहीं कही  पानी की नल है।  इसके लिए केंद व् राज्य की  सरकारें  बधाई के पात्र है।  

जय हिन्द जय भारत 

 


24.5.21

थप्पड़ की मार , कोरोना मार पर मारी

थप्पड़ की मार , कोरोना  मार पर मारी

चुनावी माहौल में  नेताजी पर थप्पड़ों की बौछार  देख, आम आदमी इस तरह के थप्पड़ कांड को वोटर्स  की सहानुभूति  लेने  व्  मीडिया की सुर्खिया बटोरने का केवल सिर्फ केवल हथकंडा मात्र  मानता है।  कुछ पक्षकार इसे नेताजी  के लिए  जीत का  शुभ संकेत मानते है। 

नेता को लगे थप्पड़ को लेकर  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में  थप्पड़ पर ताल ठोक के चर्चा  करना,   महापंचायत  बिठा ,  थप्पड़ के शॉट को  हर  एंगल से  स्लो मोशन में  बार-बार  दिखा नेता की  छवि को जनता में चमकने  का काम किया  जाता है।  जिससे   चैनलों की TRP में  चार चाँद लग जाते   है।  

कहने का  तात्पर्य  यह कि   थप्पड़ एक - लाभ अनेक एक पथ-दो काज की तरह आम के आम गुठली के दाम व्  पांचों उंगुली घी में और सिर कढ़ाई में वाली कहावत यहां  पूरी तरह से चरितार्थ होती है  

चुनाव में नेताओं को   थप्पड़ खाने के किस्से तो आम है परन्तु  इन दिनों  कोरोना माहमारी के दौर में  जनता को अफसरों से थप्पड़ खाने की  बात भी आम  हो चली है।    यूं समझ लीजिये  अफसर निर्णय भी  देते है और  सजा भी  अपने हाथों से  देते है। यदि इसी तरह  का न्याय, न्यायालय में भी हो तो न्याय व्यवस्था का क्या होगा  ?    

अफसरों दवरा  जनता को  थप्पड़ मारने को लेकर  भरपूर  मीडिया कवरेज मिलती है।  हर  घर, हर हाथ में  स्मार्ट फोन से सोशल मीडिया  ऐसे अफसरों की निरंकुश छवि को घर-घर पहुंचा देता है Ɩ अफसरों दवरा जनता को थप्पड़ मारने की घटना   नेताओं  को लगे थप्पड़ से मिली  पब्लिसिटी से  प्रेरित होकर लगती से प्रतीत होती है। 

 कोरोना  माहमारी से   दुखी जनता को  जब  अफसरी थप्पड़ से ज्यादा , अफसरी  मरहम की ज्यादा  जरुरत है  ,ऐसे में कुछ अकुशल अफसरों दवरा  नाकामी को  छुपाने के लिए जनता  को थप्पड़ मारना,  एक तो कोढ़ , ऊपर से उसमें  खाज  जैसा काम करता  है Ɩ  

 

 त्रिपुरा में  शादी के पवित्र मंडप में  जिलाधिकारी  दवरा  पंडित जी , दूल्हा -दुल्हन ,  महिलाओं से बदसुलूकी  करना , पुलसिया भाषा में अमर्यादित तरीके से  धकियाना--धमकाना , छत्तीशगढ़ में  जिलाधिकारी  द्वारा परिवार के सदस्य के इलाज के सबंध में बाहर निकले , युवक पर   धप्पड़ मारना , गुस्से से  मोबाइल  तोड़ना, व् सुरक्षा कर्मियों से डंडे मरवाना ,सब इसी श्रेणी के कृत्य है।   

निश्चय ही इस तरह का व्यवहार  अफसरों के चयन प्रकिर्या व् ट्रेनिंग में बड़ी कमी की ओर इशारा करता है। आखिर आजादी के बाद भी जनता कब तक अफसरों से गुलामों जैसा व्यवहार सहन करने को मजबूर रहेगी Ɩचयन व् ट्रेनिग एजेंसी व् सरकारों को इस कमी की और  विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।  

 

जय हिन्द जय भारत  

 

 

  

 


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