भाषा वो सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से हम अपनी बात एक दूसरे तक पहुचा सकते है। भाषा सरल व् लचीली हो तो उसका
जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगता है। ग्लोबलाइजेशन के युग ने हिंदी को सात समंदर पार बसे लोगों के दिल तक पहुचा
दिया है। इंग्लैंड के चुनाव हों या अमेरिका के, दोनों में हिंदी के वाक्य "अब
की बार ……..... " जैसे हिंदी के सरल शब्दों के नारों का प्रयोग किया गया।
हिंदी
के बढ़ते प्रचार व् प्रसार को देखते हुए समय आ गया है कि हिंदी में प्रचलित
दूसरी भाषा के शब्दों को हिंदी शब्द कोष में शामिल किया जाये। जैसे अभी
हाल ही में विमुद्रीकरण के स्थान पर बोला जाने वाला शब्द “नोटबंदी” को हिंदी शब्द
कोष में शामिल करके किया गया। इसी तरह कुछ शब्द जैसे "सर्जिकल स्ट्राइक,
सेक्युलरिज़्म, ब्लैक मनी, कैश-लेश इकोनॉमी, ग्लोबलाइजेशन आदि
को भी हिंदी शब्द कोष में शामिल किये जाने की आवश्यकता है।
वैसे
तो हिंदी में भारतीय भाषाओँ के साथ विदेशी भाषा के काफी शब्द प्रचलित है
। अंग्रेजी, अरबी, जापानी आदि के शब्द अब हिंदी का एक हिस्सा बन गये हैं। आज हिंदी
व्यापार व् रोजगार की भाषा भी बनती जा रही है। अतः अंगरेजी की ऑक्सफ़ोर्ड-डिस्स्कनरी
की तरह ग्लोबल हिंदी- डिस्कनरी (शब्दकोश ) की भी तीव्र
आवश्यकता है। ताकि भारत के 125 करोड़ लोगों के अतिरिक्त अन्य देशों के लोग भी इसे
अधिक से अधिक समझ व् प्रयोग कर सके।
इंटरनेट,
हिदी फिल्मों, TV के अतिरिक्त, 2014 में केंद्र शासन में आयी सरकार के मुखिया श्री
नरेंद्र मोदी के हिंदी के माष्यम से अपनी बात 125 करोड़ देशवाशियों के साथ-साथ
शार्क पड़ोसी देशों में पहुंचा देने से तो हिंदी और भी अधिक मजबूत होकर उभरी
है। देश में हिंदी को और मजबूत बनाने के लिए सरकारी फार्मों, परीक्षा आदि
में हिंदी में कठोर अनुवादित भाषा पर तुरन्त रोक लगाये जाने की आवश्यकता है।
टैक्स, टीचर, सेल्स-टैक्स या अन्य इसी प्रकार के टेक्नीकल शब्दों को जब हर हिंदी
बोलने वाला समझता है तो भला उसका “उत-पटांग” अनुवाद करने की क्या आवश्यकता है ?
आशा है सरकार वर्ष 2017 में सरकारी फार्मों की हिंदी में अनुवादित भाषा का सरलीकरण
का काम अवश्य करेगी।
साथ
ही अंग्रेजी की ऑक्सफ़ोर्ड -डिस्कनरी की तरह एक “ग्लोबल हिंदी डिस्कनरी” पर भी विचार करेगी
जिसमें अन्य भाषा के ज्यादा बोले व् समझे जाने वालों शब्दों का समावेश होगा।
इसी
के साथ मेरी नववर्ष की शुभ कामनाएं ! जय हिन्द ! जय भारत !