31.5.20

कोरोना काल के कुछ तथ्य

 लॉकडाउन के 22 March ,२० से 31 May ,२० के दौरान,  इन 71 दिनों के कोरोना काल में  कुछ तथ्य  -

1- भारत के 28 राज्यों व् केंद्र शासित प्रदेशों में बसी 135 करोड़ जनसख्या में गावों से शहरों की ओर देश की कुल आबादी में से एक तिहाई ने अर्थात 45 करोड़ आबादी ने अपने मूल स्थान से रोजगार या अन्य कारणों से पलायन किया।  

2- गांव से शहरों की ओर पलायन का मुख्य कारण वैसे तो रोजगार है। परन्तु अन्य कारणों के इलावा कमजोर क़ानून व्यवस्था के कारण उपजी असुरक्षा के कारणों से भी भारी संख्या में  लोग गांव से शहरों की ऒर पलायन करते है   

3- कोरोना काल में मौत के भय, रोजगार न होने के कारण शहरों से गॉंव की ओर आश्चर्यजनक रूप से उलटा पलायन देखने को मिला। 

 उलटे पलायन को देखते हुए राज्य व् केंद्र सरकार को स्थानीय स्तर पर रोजगार के इंतजाम के साथ-साथ गांव में सुरक्षा के लिए  विशेष नीति बनानी चाहिए,  जैसे पुलिस चौकी/ पुलिस स्टेशन आदि ! ताकि सुरक्षा के अभाव में फिर से गावों से पलायन न हो । 

4- कोरोना काल में पलायन के समय लोगों में गजब की हिम्मत व् हिमालय से ऊंची  इच्छा शकित देखने को मिली। जैसे छोटी सी साइकिल से 1200 किलोमीटर से अधिक  की दूरी का लक्ष्य तय कर, पूरा करना ,  माताश्री दवरा बीच रास्ते में शिशु को जन्म देने के तुरंत बाद  70 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करना, एक दृढ़ इच्छा शक्ति व् मजबूत इरादे को  दर्शाता है,  जो संघर्ष से ही जीवन है, को पूरी तरह सिद्ध करता है।  

5- बचपन से लेकर जवानी तक संघर्षों व् अभाव में जीने के आदि हो चुके आम लोगों ने स्ट्रांग विल पावरदृढ इच्छा शक्ति ) से  देश को कोरोना से होने वाली असमय मौतों से  बहुत हद तक बचाये रखा है। वरना पूरी दुनिया में  निर्दयी चीनी कोरोना वाइरस से अभी तक लगभग तीन लाख पैसठ हजार लोगों का जीवन समय समाप्त हो चुका है Ɩ

अकेले  सुपर पॉवर अमेरिका में ही  अभी तक लगभग एक लाख चार हजार लोग  काल का ग्रास बन चुके है।  

5 – इसी को देखते हुए केंद्र सरकार दवरा समय पर  शक्ति से उठाये गए कदम व् जन जागरूकता के वजह से भारत ने जनहानि को काफी कम किया है। 

6- प्रदेश सरकारों दवरा मजदूरों के पलायन के समय उठाये गए कदम अत्यंत सराहनीय है। इनमें उत्तर प्रदेश सरकार का कार्य सचमुच सराहनीय है। 

6-  कम लक्षण वाले कोरोना के मरीजों पर बनी  दिल्ली सरकार की  होम क्वारंटाइन/ होम आइसोलेशन पर डोकुमेंटरी एक अच्छी डोकुमेंटरी है। जो  कोरोना के कम  गंभीर मरीजों के लिए एक संजीवनी का काम करेगी। दिल्ली सरकार का यह प्रयास सराहनीय है।    

हम सभी कोरोना से सुरक्षित रहें , इसी  की कामना करते हुए 

 जय  हिन्द जय भारत  

 

5.5.20

जरूरी जरूरत (Needs) जीने की


आदमी की जरुरतें (Needs) असीमित होती है , जरूरतें  पूरे  करने  के  साधन कम ।  इसी लिए जीवन  जीने लिए  जरूरतों की  चुनाव  अर्थात  वर्गीकरण  करना  पड़ता  है।  मूल रूप से सामान्य जीवन  जीने के लिए  रोटी, कपड़ा, मकान की  जरूरत  होती है Ɩ इसी आधार पर   जरूरतों को   तीन वर्ग  1- जीवन  रक्षक  जरुरत  अथवा  आवश्यक  आवश्यकता  ( Life Saving Necessities), 2- आरामदायक (Comforts) जरूरत , 3-  विलासिता पूर्ण  (Luxuries) जरूरत में  बांटा  जा सकता है।  
एक प्रकार से सीमित साधनों में जरूरतों  को कम करना ही एक उत्तम समाधान है। जैसा की  आम लोगों ने लॉकडाउन के समय किया। इस दौरान लोगों ने  जरूरतों को न केवल  कम किया वरन संयम से जरूरतों का दमन भी किया।  इसी कारण  कम आय अथवा सीमित साधनों में भी लोग दो-दो लॉकडाउन को सहर्ष झेल गए।    
 देश, स्थान-काल, आयु-आय , मौसम-जलवायुवर्ग आदि  घटकों  के  कारण   व्यक्ति की जरूरतें  अलग-अलग हो सकती है।  मसलन किसी की विलासिता पूर्ण जरूरत  दूसरे के लिए  आवश्यक आवश्यकता हो सकती है Ɩइसे किसी  सीमा में बांधना  नामुमकिन है।  
उदाहरण के लिए  जैसे  मजदूर/ कामगार के लिए  कार एक विलासिता की वस्तु/ जरूरत है, वहीं  व्यापारी, डॉक्टर, पत्रकार , वकील आदि  के लिए  यह  आवश्यक आवश्यकता  है।  
 अतः स्पष्ट है कि जरूरतें बदलती रहती है।  जैसा कि  आजकल  लॉकडाउन-3-O में  देश भर खुली शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़  को देखकर लग रहा है।  ऐसा लगता है कि  शराब विलासिता की जरूरत न हो अब  एक आवश्यक जरूरत बन गई है। 
 हमारे समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनेताओं, देश के नीति निर्मातों को देश में शराब की बढ़ती खपत व् लोगों की  बदलती जरूरत की ओर ध्यान  देने की शीघ्र आवश्यकता है।  शराब के लिए घंटों लाइन में लग लाठी खाती भीड़ को देख , इस पर अध्धयन कर, इसकी श्रेणी बदलने के आवश्यकता है Ɩ    







3.5.20

अपने वेंडर्स को जाने (KYS)


एक  उपभोगता, क्रेता अथवा खरीदार,  जब  किसी  व्यक्ति, समूहवेंडर्स, फुटकर  फल-सब्जी  विक्रेता किराना दुकानदार आदि  से रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए लेन-देन करता है तो वह विक्रेताओं, वेंडरों की  बेसिक  जानकारी अपने पास  रखता है। मसलन !  वेंडर्स का व्यवहार कैसा है  ?  तोल कैसी है ?  सामान,फल-सब्जी की गुणवत्ता कैसी है ?   ईमानदारी कैसी है ? आदि-आदि  
इन्ही गुण-दोषों  के आधार पर एक उपभोगता/क्रेतावेंडरों/ विक्रेताओं से रोजमर्रा का लेन-देन  करता है।   धोखेबाज, हेरा-फेरी मास्टर,  गुस्सैल  या संग्दिध  से  एक खरीदार व्यक्ति  लेन-देन न कर  कन्नी काटता है।
 अतः  निष्कर्ष निकाल सकते है कि  वेंडरों, फुटकर विकर्ताओं की अपनी एक व्यकितगत गुडविल (ख्याति) होती है,  जिसके आधार पर  बिक्री निर्भर करती है।

कोरोना वैश्विक माहमारी से  विश्व भर में इस समय तक लगभग 2.50 लाख लोग  काल के गाल में समा चुके हैं ,  इनमें  भारत में आरोग्य सेतु के अनुसार 1223  कोरोना से हुई मौते भी  शामिल है।

कोरोना जैसी छुवाछूत  बीमारी, जिसके लक्षण बहुत देर से प्रकट होते है , क्रेताओंउपभोक्ताओं को  अंदर तक भयभीत कर दिया है।  इसी लिए वह इन दिनों अनजान वेंडरों/ विक्रेताओं से  लेन-देन करने से हिचकते है  
 ऊपर से कोढ़ में खाज का काम कियासोशल, प्रिंट व्  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में  वायरल हुए  अनेकों  वीडियों ने ! जिसमें कुछ दूषित , आपराधिक, समाज-देशद्रोही मानसिकता  वाले वेंडर्स  कोरोना व् डर  फैलाने के उद्देश्य से  नोटों, फलों -सब्जी  को दूषित करते हुए दिखाई देते है 
इन्ही विकृत मानसिकता  वाले वेंडरों की जानलेवा हरकतों के कारण  क्रेताओँ  में अनजान  वेंडर्स के  प्रति  अविश्वास का वातावरण भर गया है  व् वेंडरों की ख्याति को  बड़ा धक्का लगा है। इसी कुकृत्य से  उनकी   रोजी रोटी  प्रभावित होने की आशंका है Ɩ ठीक ही है  एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है।
 कोरोना के  डर के  कारण  कहीं-कहीं  कुछ  क्रेता , वेंडरों/विक्रेताओं से  पहचान पूछते है। मीडिया में इसी को लेकर  तिल  का ताड़ बनाया गया है।  भला जिस विक्रेता के कार्य-कलाप से क्रेता, व् उसके पूरे परिवार की जान पर बन जाए तो  उसकी  पहचान  पूछना कौन सा गुनाह है ?

बैंक में खाता खोलने के लिए ग्राहक को   KYC (Know –Your – Client /Customer ) फार्म स्पोर्टिंग  डोक्युमेन्ट्स के साथ  देना होता हैवेंडर्स को माल  सप्लाई करने वाली कम्पनी को KYS ( Know –Your –Suppliers )  फार्म देना होता है ,  जिसमें   PAN , BANK , एड्रेसआधार , GST  आदि की डिटेल होती है। 

अतः जब अविश्वास का वातावरण का निर्माण  हो ही गया है , तो  उपभोगता/ क्रेता  दवरा वेंडर्स से पहचान डाक्यूमेंट्स मांगना एकदम न्यायोचित है।  इसी से वेंडर्स की  क्रेताओं के बीच पहचान, गुडविल का  निर्माण होगा। 
  अविश्वास के माहौल में  झारखण्ड , बिहार में  कुछ विक्रताओं ने  उपभोक्ताओं का डर  दूर करने  व्   विश्वास पैदा करने के उद्देशय से सराहनीय पहल कर  पहचान रूप में  भगवा धवज प्रदर्शित किया। लेकिन खबरानुसार पुलिस ने शिकायत पर  भगवा ध्वज पर रोक लगा दी। जो पूर्णतः क्रेता व् विक्रेता के बीच विश्वास को तोड़ने जैसा है Ɩ
  उत्तर प्रदेश- मेरठ शहर - एक वेंडर दवरा इसी तरह की  सराहनीय पहल करते हुए  उपभोगताओं में  विश्वास पैदा करने  उद्देश्य से  ,  पहचान के रूप में    भगवा ध्वज  प्रयोग  किया ।  सेक्युलर व्यक्ति ने खतरा भांप टवीट कर , पुलिस को संज्ञानित किया , परन्तु   कुछ भी गलत न होने के कारण  मामले के टॉय टॉय फिस हो गयी  Ɩ
जब अविश्वास का माहौल निर्मित कर दिया गया  हो , उपरोक्त के आधार पर कहा जा सकता है कि  वेंडर्स को पहचान कर उससे लेन -देन  करना  एक क्रेता/उपभोगता का अधिकार है  इसमें भला सेकुलरिटी , धर्म , राजनीती कहाँ पैदा होती है । हर बात को  धर्म, राजनीति के चश्में से  देखना मतलब गयी , भैस पानी में । 
 कोरोना ने दुनिया बदल दीउपभोगता/ क्रेता  हित  में अगर वेंडर्स की पहचान अनिवार्य हो के नियम बदल जाए तो क्या बुराई है वेंडर्स पहचानिये , सुखी- स्वस्थ रहिये 
  




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