14.10.10

मुज़फरनगर की रेल / यातायात समस्याएं

मुज़फरनगर की रेल / यातायात समस्याएं


  मै मुज़फरनगर  की रेल यातायात  से संबधित समस्याओं को उठाना चाहता हूँ .  हो सकता है इसके    माध्यम से रेल   यात्री को होने वाली परेशानी को सम्बंधित प्रशासन तक पहुचाने  मे मदद मिले .  आगामी बजट के समय कुछ यहाँ के लिए भी किया जाए .  मुज़फरनगर   बाई पास बनने से उतराखंड की लगभग सभी  व यू पी की  अधिकतर बसे शहर के बाहर से निकलती है . जिस कारण  यहाँ मजबूरन लोगों को रेल का रुख करना पड़ा . यहाँ  रेल का इसी कारण  महत्त्व  काफी बढ़ गया है .  तथा  अब रेल  ही  एक सस्ता व सुलभ साधन उपलब्ध  है . इसमें कोई शक भी नहीं रेल किराया सस्ता होने से  भी भीड़ रेल मे बढ़ी है . रेल का  मुज़फरनगर के लिए  रोजगार , शिक्षा , चिकित्सा व आने जाने में काफी बड़ा  अहम् रोल  है .
वैसे तो यहाँ से काफी मेल गाडी उत्तराखंड / सहारनपुर की ओर गुजरती है परन्तु 1996  से दिन के समय  रिजर्व कोच मे यात्रा पर अनारक्षित यात्री को भारी जुरमाना देना पड़ता है . व साथ ही  जर्नल डिब्बे नाम मात्र के है ,  इसलिए यहाँ को लोगो को इन गाड़ियों का जो लाभ मिलना चहिये था नहीं मिल पा रहा . उलटे इन गाड़ियों ने पेसेंजर गाड़ी की रफ़्तार पर ब्रेक लगा दिए . इस बारे मे  जुलाई  २००५ मे उस समय के रेल मंत्री जी श्री लालू जी  को   पत्र लिखा . जिन्होंने   मेरठ शटल को  मुज़फरनगर तक विस्तार दे दिया . निश्चित ही यह  उनका व रेल  प्रशाशन  का एक सराहनीय  कदम  था
1 -  वर्ष  २००६    मुज़फरनगर  से  केवल  दिल्ली के लिए एक ही ट्रेन शटल ( 1DM ) का संचालन किया जा रहा है . यात्रियों की संख्या व  क्षेत्र   के विकास  को देखते हुए यहाँ से और शटल/ एक्सप्रेस   ट्रेनों  को ना केवल दिल्ली बल्कि मेरठ / सहारनपुर/ रूडकी /  हरिद्वार  तक चलाया जाना  चाहिए  . इससे लम्बी दूरी की ट्रेनों मे  लोकल यात्री का दबाव कम होगा .  लोकल यात्री के  साथ साथ लम्बी दूरी के यात्री भी आराम से यात्रा कर सकेगे .रेल आरक्षण की मारा मारी भी कम होगी .
२- मेरठ सिटी से टपरी ( सहारनपुर ) तक रेलवे लाइन को दोहरा करने का काम तेजी से किया जाना  चाहिए  . सिंगल लाइन होने से पेसेंजर  ट्रेन को,  सामने से आने  वाली ट्रेन को पास देने मे बीच के स्टेशनो पर  काफी समय  तक खड़ा होना पड़ता है जिससे  यात्रियों  का काफी समय बर्बाद  होता ह़े  , रेल संचालन  मे देरी होती है . रेल स्टाफ पर मानसिक  दबाव पड़ता है .  उनकी   कार्य      करने की शक्ति पर बुरा  प्रभाव   पड़ता है , यात्री की सुरक्षा व समय  भी दाव पर लगी रहता  है .
सिंगल लाइन पर अधिक ट्रेन संचालन से रेल ट्रेफिक मे कभी भी बाधा पड़ सकती है .
३- रेल लाइन का सहारनपुर से मेरठ - गाज़िया बाद तक बिजलीकरण का काम तेजी से किया जाना चाहिए .  ताकि EMU / DMU   चला कर  लोकल यात्रियों का दबाव कम किया जा सके .
४- टिकिट खिड़की पर भीड़ कम करने के लिए दुबारा से UTS ( अनारक्षित टिकटिंग पर्णाली ) को बहाल किया जाना चाहिए .
 इसमें  किसी दुरूपयोग के कारण संसोधन करने से यात्रा से ३ दिन पहले टिकेट लेने का प्रावधान  बदल दिया गया . जो अब  बदल कर २०० किलोमीटर से कम  टिकिट  लेने पर समाप्त कर दिया गया है .  इससे टिकिट खिड़की / रेलवे स्टेशन पर घंटों पहले टिकिट लेने के चक्कर में  भीड़ जमा हो जाती है .  प्लेट फार्म पर / करंट टिकिट खिड़की पर  यात्रियों का दबाव कम करने के लिए पुरानी व्यवस्था का  पुनः बहाल किया जाना जरुरी है . अनारक्षित  टिकिट को  साथ ही  बेंक ,पोस्ट ऑफिस मे भी  मिलने  की  व्यवस्था करनी चाहिए .  

५- मुज़फरनगर शहर  रेलवे स्टेशन के दोनों और  घनी आबादी बसी  होने के कारण व यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुअ
 दिल्ली की तरह दोनों  ओर  टिकिट  खिड़की/ रेल टिकिट प्राप्त करने की व्यवस्था  होनी चाहिए . ताकि स्टेशन की भीड़ को   दोनों ओर बाँट कर काम किया जा सके .  भीड़ को नियंत्रित किया जा सके . नई मंडी/ पटेल नगर/ भोपा रोड / गाँधी कालोनी  आदि   की  ओर   के लोगो को  इस  समय  टिकिट  लेने मे समय व भारी कठिनाई का सामना  करना  पड़ रहा है .
6- देवबंद से  इकबालपुर ( रूडकी )तक के रेल मार्ग को जल्दी पूरा करना चाहिए . ताकि उत्तराखंड से आने जाने वाली गाड़ी को घूम कर न जाना पड़े व दिल्ली  से उत्तराखंड की राजधानी  देहरादून     पहुचने के समय को काम  किया जा सके .
7 मुज़फरनगर ,हरिद्वार - रूडकी  -मेरठ  के लोग एक स्थान से दुसरे स्थान पर काफी आते जाते हैं  . लोगो की सुविधा व मेल गाड़ी पर लोकल यात्री व भीड़ कम करने के लिए इन   आस्थानों   को जोड़ने के लिए  शटल चलाई जानी चाहिए .
8- टिकट खिड़की से भीड़ कम करने के लिए २४ घंटे टिकट एजेंसी व करंट काउंटर बढाए जाने चाहिए .  तथा टिकट एजेंसी  की संख्या बढ़ा कर भीड़ को जहाँ कम किया जा सकता है वहीँ  लोगो को रोजगार भी प्रदान किया जा सकता है .
९- यहाँ के लोगो के मन मे यह बात घर कर गयी है कि रेल यहाँ के लोगो को सोतेली आँखों से देखते है . अतः  मुज़फरनगर  ( पशचमी उत्तरप्रदेश ) व मुज़फरपुर ( बिहार ) मे रेल विकास के मामले मे अंतर न किया जाये .
10- फिलहाल महिलाए प्रायः  यहाँ के साथ साथ लगभग सभी अस्थनों पर  बिना लाइन के टिकट लेती है . इससे  पुरुस  यात्री लाइन मे ही खड़े रह जाते है . अतः महिला टिकट खिड़की अलग से होनी चाहिए . ताकि टिकिट  वितरण मे मारामारी न मचे .  
११-- उत्तराखंड राज्य का टूरिस्म  मे काफी कुछ निर्भर करता है . तथा यह एक यात्री यों के लिए सबसे इनकम वाला रुट है .  इसलिए इस रुट का विकास करना बहुत जरुरी है .
१२- रूडकी - हरिद्वार रेल रुट का  जल्दी सर्वे कर उस पर कम शुरू किया जाना चाहिए . ताकि  रेल ट्रेफिक को लक्सर ( जक्सन) पर कम कर रेल की रफ़्तार को बढ़ाया जा सके .
१३- मुज़फरनगर से शामली - पानीपत तक रेल का नया रुट निकाल कर  हरिद्वार के रुट को मिलाना चाहिए .

आशा है हमारा रेल विभाग इस विषय मे अवस्य आवश्यक कदम उठाएगा . इससे रेल की जहाँ आय बढ़ेगी . लोगो को यातायात की सुविधा होगी . रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे . उत्तराखंड राज्य का टूरिस्म बढेगा .

23.8.10

राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक

काश्मीर में सिख्खों कों धमकी मिलने के बाद तो लगता हे क़ि जेसे बंटवारे के समय जहाँ पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुआ व् अब भी हो रहा हे , वही आज आजाद भारत में भी राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा हे। भारत में आज अप्ल्संख्यक वो हें जो रास्ट्रीय अस्टर पर संख्या बल में कम हों । यद्दयापी UNO के अनुसार यदि किसी धर्म सम्पर्दाय क़ी आबादी 8% या उससे अधिक हें तो उस स्म्पर्दाय कों अल्प्संखयक नहीं माना जा सकता । परन्तु कुछ सवार्थ वश लोग उन्हें एक वोटबेंक क़ी तरह इस्तेमाल कर, अपना हित साध रहे हें ।
आज रास्ट्रीय स्तरपर तो अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नहीं हो रहा परन्तु राज्य स्तर पर जरूर अल्पसंख्यांक अत्याचार के शिकार हो रहे हें । काश्मीर में पंडितों का पलायन , पंजाब में हिन्दुओं क़ी हत्या , व अब फिर काश्मीर में सिखों कों धर्म परिवर्तन या घाटी छोड़ जाने क़ी धमकी । क्या ये अल्पसंख्यकों पर अत्याचार क़ी कहानी नहीं कहते ?सरकार व् बुध्धि जीवी वर्ग कों इस विषय पर दुबारा सोचना चाहिय । भारत में सबको बराबर के अधिकार हें फिर ये भेदभाव क्यों ? आज भी भारत जेसी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी जहाँ बहुसंख्यकों पर अल्पसंख्यक राज करते हें । वो भी बिना किसी एतराज के । हमारे परधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी इसका जीता जागता उदहारण हें । एक समय तो राष्ट्रपति श्री अबदुलकलाम व् प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी दोनों ही भारत कों चला रहे थे । भला फिर कोन कह सकता हे कि अल्पसंख्यकों कों अधिकार नहीं । आज यदि देखा जाए तो अल्पसंख्यक कहीं जयादा अधिकार रखते हें । भारत में आज राज्य स्तर के साथ साथ जिला स्तर पर भी वहां बसे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की आवश्यकता हे । हमें अपने हितों से ऊपर उठकर सोचना चाहिय । भारत वो देश हे जहाँ सेकड़ों सालों से अल्पसंख्यकों ने राज किया उसमें चाहें मुग़ल हों या अंग्रेज । आज अल्पसंख्यक कि नई परिभासा की राज्य व् जिला स्तर पर बनाने की जरुरत हे । काश देश हित व् जनहित में ऐसा हो









21.8.10

अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक

आज सभी मोसम का मजा ले रहे थे । हंशी मजाक के बीच आज हर आदमी अपने को अल्पसंख्यक सिद्ध करने पर तुला था । ध्वनी मत से एक मूंछ वाले को अल्पसंख्यक घोषित कर , सभा का संचालनकर्ता नियुक्त किया गया । बस फिर क्या था हर कोई अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने पर तुला था ।दाढ़ी वाले का अपना तर्क था , चश्मे वाले का अपना । पाजामा वाले का अपना तो पेंट वाले का अपना ।हार्ट वाले का कुछ तो सुगर वाले व बी पि वाले का कुछ । जितने मुंह उतनी बात । सबका अपना ढपली अपना राग । सभी को अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने के होड़ लगी थी ।बहती गंगा में सभी हाथ धोना चाहते थे । आखिर राम नाम की लुट है लूटी जा सो लूट वाली बात जो थी । कोई बोला सरकार अल्पसंखौ को सुविधा देती हें तो में क्यों न लूँ । अनपढ़ बोला भाई में तो काला अक्सर भेंश बराबर हूँ इसका अस्ली हकदार में ही हूँ ।आप सभी पढ़ें लिखें हें तो भला ये बाजी मेरे हाथ क्यों न लगे । फिर भला मुफ्त का चन्दन घिस मेरे भाई में क्यों न ल्गांव।
स्तिथि बड़ी विचित्र थी । एक गाँव वाला शहरी से अड़ गया की अल्पसंख्यक का तमगा उसे ही मिलना चाहिय ।
भेंश वाला , बकरी वाला , गाय वाला मुर्गी वाला अपनी ही दलीलें दे रहा था । काला गोरे पर ऑंखें तरेरने लगा , भला वह क्यों इस केटेगिरी का हकदार नहीं हो सकता ।
अपील दलील का दौर चला , सब्जी वाला फल वाले पर कपडे वाला रेडीमेड वाले पर हावी हो इस लुभावने लड्डू को लपकने को बेकरार था ।उधर मूंछ वाला अपनी मूंछों पर ताव दे अपने बालों को सहला रहा था ।पलड़ा सभी काभारी था । न जाने ऊंट किस करवट बेठ जाए । सभी इसी उधेड़ बुन में मगह्पच्ची के रहे थे । निर्णय हो तो केसे हो । कोन अल्पसंख्यक कोन बहुसंख्यक इसका फेशला करना बढ़ी टेढ़ी खीर थी ।सभी एक दुसरे का मुंह ताअक रहे थे । कोई भी फेशला करना टेढ़ी खीर थी । एक तरफ कुवा तो दूसरी तरफ खाई । किसी भी निर्णय से तिल का ताड़ , बात का बतंगड़ बनना लाजमी था । देने के लेने पड़ने का पुरा अंदेशा था। सभी बातें एक गंजा कान लगा कर सुन रहा था , उससे रहा न गया । सञ्चालन क्रता की इजाजत ले वह भी बिच में कूद पड़ा । लगता था मरे शेर की मुछ हर कोई उखाड़ना चाहता था । क्या करे क्या न कर स्थिति सांप व छुछुंदर वाली थी खाए तो जान जाए न खाए तो नामर्द कहलाये । मशला कश्मीर , राम मंदिर की तरह पेचीदा हो चला था जिसे कोई भी नहीं छओड़ना नहीं चाहता था । सभी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे । पूरा का पूरा विषय बदल चूका था । मुफ्त की मुर्गी भला कोअन छोड़ना चाहेगा ।
काफी माथा पची के बाद भी नतीजा जीरो । रिजल्ट वाही ढहाक के तिन पात । तभी पार्क में नेताजी नजर आये ।
सभी की उम्मीद उन्ही पर जा टिकी । नेताजी जी ने माजरा समझ पूछा की किसके कितने वोते हें तथा कोन वोटो को वोट बैंक में तब्दील कर सकता हें । नेताजी जी वोटो का गुना जमा कर एक उनमें के एक को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया । सभी नेताजी के अहसान मंद थे की आपने केसे समस्या का चुटकी बजा हल कर दिया । दूसरी तरफ हम वाद विवाद में पद अपना समय खराब कर रहे थे ।
नेता जी मन ही मन ऐसा महसूस कर रहे थे जेसे अन्धें के हाथों बटेर लग गयी हो । अँधा मरे या जवान हत्या से काम । हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा । आखिर सत्ता की कुनजी जो हाथ आ लगी थी ।






































PF , ESIC भुगतान ऑफ लाइन मोड़ - RTGS /NEFT के रूप में

 PF ,  ESIC  भुगतान ऑफ लाइन मोड़ - RTGS /NEFT के रूप में  व्यापारिक / गैर व्यापरिक संस्थानों , कंपनी , फैक्ट्री  आदि को हर  माह  अपनी  वैधानि...