संसद दवरा पारित कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा रखी है, केंद्र सरकार इन कानूनों को कुछ वर्ष के लिए ठन्डे बस्ते में
डालने के लिए भी तैयार है , परन्तु किसान आंदोलनकारी, टस से मस
होने को तैयार नहीं । आंदोलनकारी, जिनकी संख्या ज्यादा संख्या
नहीं है, न ही
वे पूरे भारत के किसानों का प्रतिनिधित्व करते है ,वे कृषि कानूनों में कमियों पर बात न
कर, नित नयी मांग उठाते रहते है। जैसे 18 फरवरी के "रेल रोको" आंदोलन को कृषि
कानूनों का विरोध के साथ- साथ कोरोना काल में बंद पडी ट्रेनों को फिर से शुरू
करने की मांग से जोड़ दिया गया । एक पंथ दो काज , हींग लगे न फिटकरी रंग चोखा आये।
इसी तरह पूर्व
में दिल्ली में दंगों के आरोपियों को छुड़ाने की मांग/पोस्टर आदि भी
किसान आंदोलन में देखे गए। अब यह आंदोलन उद्देश्य से पूरी तरह से भटक गया है , इसकी परिणीति यही बताती है कि - "आये थे हरी
भजन को,ओटन लगे कपास" !
जय
हिन्द जय भारत