24.5.21

थप्पड़ की मार , कोरोना मार पर मारी

थप्पड़ की मार , कोरोना  मार पर मारी

चुनावी माहौल में  नेताजी पर थप्पड़ों की बौछार  देख, आम आदमी इस तरह के थप्पड़ कांड को वोटर्स  की सहानुभूति  लेने  व्  मीडिया की सुर्खिया बटोरने का केवल सिर्फ केवल हथकंडा मात्र  मानता है।  कुछ पक्षकार इसे नेताजी  के लिए  जीत का  शुभ संकेत मानते है। 

नेता को लगे थप्पड़ को लेकर  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में  थप्पड़ पर ताल ठोक के चर्चा  करना,   महापंचायत  बिठा ,  थप्पड़ के शॉट को  हर  एंगल से  स्लो मोशन में  बार-बार  दिखा नेता की  छवि को जनता में चमकने  का काम किया  जाता है।  जिससे   चैनलों की TRP में  चार चाँद लग जाते   है।  

कहने का  तात्पर्य  यह कि   थप्पड़ एक - लाभ अनेक एक पथ-दो काज की तरह आम के आम गुठली के दाम व्  पांचों उंगुली घी में और सिर कढ़ाई में वाली कहावत यहां  पूरी तरह से चरितार्थ होती है  

चुनाव में नेताओं को   थप्पड़ खाने के किस्से तो आम है परन्तु  इन दिनों  कोरोना माहमारी के दौर में  जनता को अफसरों से थप्पड़ खाने की  बात भी आम  हो चली है।    यूं समझ लीजिये  अफसर निर्णय भी  देते है और  सजा भी  अपने हाथों से  देते है। यदि इसी तरह  का न्याय, न्यायालय में भी हो तो न्याय व्यवस्था का क्या होगा  ?    

अफसरों दवरा  जनता को  थप्पड़ मारने को लेकर  भरपूर  मीडिया कवरेज मिलती है।  हर  घर, हर हाथ में  स्मार्ट फोन से सोशल मीडिया  ऐसे अफसरों की निरंकुश छवि को घर-घर पहुंचा देता है Ɩ अफसरों दवरा जनता को थप्पड़ मारने की घटना   नेताओं  को लगे थप्पड़ से मिली  पब्लिसिटी से  प्रेरित होकर लगती से प्रतीत होती है। 

 कोरोना  माहमारी से   दुखी जनता को  जब  अफसरी थप्पड़ से ज्यादा , अफसरी  मरहम की ज्यादा  जरुरत है  ,ऐसे में कुछ अकुशल अफसरों दवरा  नाकामी को  छुपाने के लिए जनता  को थप्पड़ मारना,  एक तो कोढ़ , ऊपर से उसमें  खाज  जैसा काम करता  है Ɩ  

 

 त्रिपुरा में  शादी के पवित्र मंडप में  जिलाधिकारी  दवरा  पंडित जी , दूल्हा -दुल्हन ,  महिलाओं से बदसुलूकी  करना , पुलसिया भाषा में अमर्यादित तरीके से  धकियाना--धमकाना , छत्तीशगढ़ में  जिलाधिकारी  द्वारा परिवार के सदस्य के इलाज के सबंध में बाहर निकले , युवक पर   धप्पड़ मारना , गुस्से से  मोबाइल  तोड़ना, व् सुरक्षा कर्मियों से डंडे मरवाना ,सब इसी श्रेणी के कृत्य है।   

निश्चय ही इस तरह का व्यवहार  अफसरों के चयन प्रकिर्या व् ट्रेनिंग में बड़ी कमी की ओर इशारा करता है। आखिर आजादी के बाद भी जनता कब तक अफसरों से गुलामों जैसा व्यवहार सहन करने को मजबूर रहेगी Ɩचयन व् ट्रेनिग एजेंसी व् सरकारों को इस कमी की और  विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।  

 

जय हिन्द जय भारत  

 

 

  

 


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