25.12.15

T- Twins नामकरण

 बिटिया की चिंता सभी माता-पिता को होती है। आजकल परिवार में बच्चों की संख्या एक या दो तक ही सिमट जाने के कारण तो बिटिया का महत्व और भी बढ़ जाता है, उसकी बालपन की अटखेलिया एक सुखद की अनुभूति देती है। 

बात वर्ष 2015 की है! जब परिवार में नातिन ट्विन्स का सुखद आगमन हुआ।  आस-पड़ोस, रिस्तेदार सभी ट्विन्स की  एक जैसी शक्ल देख चकित होते व् बड़े व् छोटे ट्विन्स में भेद कर पाने में असमर्थ रहते।   ट्विन्स अभी कुछ ही दिन के हुए थे तो उनके  नामकरण को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई।  जबकि पहले जमाने में नाम को लेकर इतना झमेला न था।
  बच्चे का नामकरण मिठाई-फल-फूल या भगवानों के नाम पर रख कर काम चला लिया जाता  था।  इमरती, राबड़ी, चमेली ,गुलाबोअनारकली, शिवापार्वतीराधाकन्हैया  आदि-आदि। ये कुछ  इसी तरह के कुछ  उदाहरण है। हाँ यह बात जरूर है कि कुछ धार्मिक प्रवर्ती वाले लोग पंडित जी से जन्मपत्री में  नामकरण करवा लेते है ।  
 परन्तु नेट-गूगल की  दुनिया ने पूरी दुनिया ग्लोबल कर दिया।  तकनीक ने भाषा-धर्म की दीवार को मिटा दिया ।  
इस पोस्ट में भी इसी तकनीक का  कमाल है, ब्लॉग लिखने में रोमन की बोर्ड से,  रोमन में हिंदी  लिखा जा रहा है। 
खैर  जो भी हो हम मुख्य मुद्दे पर आते है। इस आपाधापी के युग में बच्चों का नाम यूनिक हो, इसी को लेकर आज  नामकरण में राशिअक्षर , स्पेलिंग के साथ-साथ एक अलग से पहचान वाला नाम रखने की परम्परा शुरू हो गई है। 
 इसी भाव से उन दिनों  ट्विन्स के नामकरण को लेकर भी परिवार में यही  रस्साकसी चल रही थी । कोई परिवार में अक्षर पर ध्यान देता तो कोई राशि पर।  
सभी पारिवारिक लोगों से ट्विन्स के नामकरण के सुझाव मांगे गए। यद्यपि ट्विन्स नामकरण के चुनाव की  वीटो पॉवर माताश्री के पास ही थी ।  
 परिवार के सदस्यों की भूमिका  मार्गदर्शक मंडल की तरह थी। UNO में तो  वीटो पॉवर पांच देशों है परन्तु यहाँ  माताश्री का एकाधिकार  था।  
  नामों को  गूगल पर सर्च किया जाने लगा। माताश्री दवरा  नाम में कोई न कोई  कमी या किन्तु-परन्तु कर , रिजेक्ट कर दिया जाता। उन दिनों नामों की इसी उधेड़बुन में लगभग तीन-चार माह से ज्यादा का समय बीत गया। 
अब समस्या यह उत्पन्न हुई हमशक़्ल ट्विन्स को क्या कह कर पुकारा जाए। घर के तजुर्बेकार सदस्यों ने एक काम चलाऊ कार्यवाहक सरकार की तरह ट्विन्स के पैदा होने के समय के अंतर को  पैमाना मान -छोटे-बड़े को आधार बनाकर निक नेम दे डाले।  
पहला नामकरण हुआ -छोटे बेबी का ! जो बड़े बेबी से केवल एक मिनट छोटा था– नाम मिला  -छुट्टन !  बड़े बेबी को  भी परी  नाम से पुकारा जाने लगा । मै आज यहाँ  यह स्पष्ट करता चलूँ ,  कि  इन दिनों छोटे बेबी ने  "छुट्टन" नाम पर  एतराज जता यह  बोल दिया है- " नानू  मुझे छुट्टन ना कहा करों !  
 
खैर अब मूल बात पर  आते है।  ट्विन्स के नामकरण को लेकर काफी माथापच्ची हो चुकी थी, अंत में माताश्री को  समझाया गया कि  दिल्ली नगर निगम में एक तय समय सीमा के भीतर ही बिना नाम वाले जन्म प्रमाण पत्र में  एप्लिकेशन /एफिडेविट देकर  नाम दर्ज कराया जा सकता है। अतः अब और देरी  नहीं करनी चाहिए।  
 तय समय बीत जाने पर  बिना नाम वाले जन्म प्रमाण पत्र में नाम जुड़वाने के लिए आवेदन करना करना में बड़ा ही झंझंट होगा। 
आखिरकार नामों की अंतहीन रेस में हार मान, माताश्री ने ट्विन्स के नामों की अनमने मन से हाँ में  मोहर लगा दी । 
नामों की स्वीकृति देते समय माता श्री की हालत ठीक वैसे थी जैसी कोई फलों टोकरे में रखे  असंख्य फलों को देखकर कभी इस फल का चुनाव करता है तो कभी उसे फल का।   

 फल चुनने वाला हर बार पहला  फल चुनने के बाद दूसरे फल की ओर इस उम्मीद से लपकता है क़ि शायद दूसरा उससे कहीं ज्यादा अच्छा हो । 
 खैर राम-राम श्याम-श्याम करते , अंततः ट्विन्स का नामों को  सदा के लिए अंतिम रूप दे  निगम व अन्य सरकारी रिकॉर्ड दर्ज करा दिया गया।   नाम वाला बर्थ सर्टिफिकेट ले माताश्री ने उसे  को चूम लिया व  धीरे से ट्विन्स को उन्ही नामों से ऐसे पुकारा जैसे उन्हें जीवन भर के लिए नामों की एक नई पहचान मिल  गयी हो।  
  मां  की खुशी देख लगा मानों ट्विन्स ने भी मुस्कराते हुए नामों की  मौन स्वीकृति दे दी हो। 

जय हिन्द! जय भारत !



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