22.9.20

दिल्ली में सड़कों की दयनीय दशा

  वित्तीय वर्ष  २०-21  का ₹65 हजार करोड़ का दिल्ली-सरकार का बजट और इस पर भी  दिल्ली में सड़को की   ऐसी दयनीय दशा, इस दयनीय स्तिथि का मेट्रो से सफर  करने  वाले  दिल्ली वालों को  शायद ही पता  चलता ,  यदि  लॉक-डाउन के दौरान  मेट्रो-सेवा  बंद न होती। 

 मेट्रो-सेवा बंद होने की मजबूरी के चलते  , दिल्ली में  May,20 से खुले लॉक-डाउन में कोई सुलभ  सार्वजानिक यातायात का साधन न होने के कारण लोगों ने अपने-अपने निजी वाहनों  का प्रयोग किया Ɩ जिसमें दुपहिया वाहनों की संख्या बहुत ज्यादा है Ɩ 

इस दौरान  जहाँ एक ओर कोरोना से लोगों की आर्थिक  कमर  टूट रही थी , वहीं सड़कों  की ख़राब  स्तिथि व् उसमें पड़े  गढ्ढों ने दुपहिया  चालकों की कमर  को और भी अच्छे से  तोड़ कर रख दिया।  

सड़कों की बदतर हालत होने कारण चालकों कईं सावधनियों को बरतना पड़ता है  जैसे - सफर के दौरान कोरोना से बचाव हेतु मास्क  का प्रयोग ट्रेफिक नियमों को पालन,   चालान  के बचाव के लिए वाहन के साथ  उचित पेपर्स रखना दुपहिया पर  सिंगल या दो सवारी का हेलमेट प्रयोग चौपहिया चालकों का सीट बेल्ट  बांधना ,   सड़कों में  बने गढ्ढों से  वाहन के साथ साथ  स्वयं को बचाना व्  सड़क में गढ्ढों  पर कड़ी व् दिव्य दूर दृष्टि रखना   आदि -आदि Ɩ

 यह सरकार की आलोचना नहीं  वरन  वो  वास्तविकता है , जिस पीड़ा को वाहन चालक नित्य प्रति भोगते हैं Ɩ

   मई माह से लेकर सितम्बर  माह के मध्य तक लोग देखों व् इन्तजार करो की नीति पर चल शांति से इसी बात की प्रतीक्षा करते रहे  कि सम्बंधित प्रशासन एक न एक दिन अपने कर्तव्य को याद करइस मुसीबत से छुटकारा दिलाने की दिशा में उचित कदम उठाएगा , परन्तु दिल्ली में भादों के मानसून की बेरूखी व् अप्रैलमई  जैसी पड़ती गर्मी की तरह या यूं कह लीजिये  कोरोना वैक्सीन की तरह कभी हाँ कभी ना की तरह कमर तोड़ सड़क से  नाउम्मीदी  ही हाथ लगी है   

सड़क में गढ्ढे ,  प्लाईओवर  में  गढ्ढे !  हाथ कंगन को आरसी क्या  अर्थात  प्रत्यक्षं किम प्रणमाम।   उदाहरण के लिए   जी.टी. रोडशाहदराशाहदरालोनी रोडदुर्गापुरी चौक से  लोनी रोड गोल चक्करगोकुलपुर से लेकर यमुना विहारभजनपुरा  आदि-आदि इसकी जीती जागती मिशाल है।  

अतः सम्बंधित प्रशाशन से सविनय अनुरोध है कि सड़क मरम्मत  से पहले   कम से कम सड़कों पर बने  गढ्ढो को विशेष  अभियान  चलाकर तुरंत भरने की दिशा में उचित पहल   करें। 

 यह भी  विनती है कि  सड़कों की व्यथा को  सकरात्मक   रूप में लें , कंगना सी  निंदा की यहां कोई मंशा नहीं !

क्यों कि -

निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय !

बिन साबुन पानी बिना शीतल करत सुभाय!

 

जय हिन्द जय भारत 

 

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