काश्मीर में सिख्खों कों धमकी मिलने के बाद तो लगता हे क़ि जेसे बंटवारे के समय जहाँ पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हुआ व् अब भी हो रहा हे , वही आज आजाद भारत में भी राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा हे। भारत में आज अप्ल्संख्यक वो हें जो रास्ट्रीय अस्टर पर संख्या बल में कम हों । यद्दयापी UNO के अनुसार यदि किसी धर्म सम्पर्दाय क़ी आबादी 8% या उससे अधिक हें तो उस स्म्पर्दाय कों अल्प्संखयक नहीं माना जा सकता । परन्तु कुछ सवार्थ वश लोग उन्हें एक वोटबेंक क़ी तरह इस्तेमाल कर, अपना हित साध रहे हें ।
आज रास्ट्रीय स्तरपर तो अल्पसंख्यकों पर अत्याचार नहीं हो रहा परन्तु राज्य स्तर पर जरूर अल्पसंख्यांक अत्याचार के शिकार हो रहे हें । काश्मीर में पंडितों का पलायन , पंजाब में हिन्दुओं क़ी हत्या , व अब फिर काश्मीर में सिखों कों धर्म परिवर्तन या घाटी छोड़ जाने क़ी धमकी । क्या ये अल्पसंख्यकों पर अत्याचार क़ी कहानी नहीं कहते ?सरकार व् बुध्धि जीवी वर्ग कों इस विषय पर दुबारा सोचना चाहिय । भारत में सबको बराबर के अधिकार हें फिर ये भेदभाव क्यों ? आज भी भारत जेसी मिसाल दुनिया में कहीं नहीं मिलेगी जहाँ बहुसंख्यकों पर अल्पसंख्यक राज करते हें । वो भी बिना किसी एतराज के । हमारे परधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी इसका जीता जागता उदहारण हें । एक समय तो राष्ट्रपति श्री अबदुलकलाम व् प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी दोनों ही भारत कों चला रहे थे । भला फिर कोन कह सकता हे कि अल्पसंख्यकों कों अधिकार नहीं । आज यदि देखा जाए तो अल्पसंख्यक कहीं जयादा अधिकार रखते हें । भारत में आज राज्य स्तर के साथ साथ जिला स्तर पर भी वहां बसे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की आवश्यकता हे । हमें अपने हितों से ऊपर उठकर सोचना चाहिय । भारत वो देश हे जहाँ सेकड़ों सालों से अल्पसंख्यकों ने राज किया उसमें चाहें मुग़ल हों या अंग्रेज । आज अल्पसंख्यक कि नई परिभासा की राज्य व् जिला स्तर पर बनाने की जरुरत हे । काश देश हित व् जनहित में ऐसा हो
।
23.8.10
21.8.10
A-अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक
आज सभी मोसम का मजा ले रहे थे । हंशी मजाक के बीच आज हर आदमी अपने को अल्पसंख्यक सिद्ध करने पर तुला था । ध्वनी मत से एक मूंछ वाले को अल्पसंख्यक घोषित कर , सभा का संचालनकर्ता नियुक्त किया गया । बस फिर क्या था हर कोई अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने पर तुला था ।दाढ़ी वाले का अपना तर्क था , चश्मे वाले का अपना । पाजामा वाले का अपना तो पेंट वाले का अपना ।हार्ट वाले का कुछ तो सुगर वाले व बी पि वाले का कुछ । जितने मुंह उतनी बात । सबका अपना ढपली अपना राग । सभी को अपने को अल्पसंख्यक घोषित करने के होड़ लगी थी ।बहती गंगा में सभी हाथ धोना चाहते थे । आखिर राम नाम की लुट है लूटी जा सो लूट वाली बात जो थी । कोई बोला सरकार अल्पसंखौ को सुविधा देती हें तो में क्यों न लूँ । अनपढ़ बोला भाई में तो काला अक्सर भेंश बराबर हूँ इसका अस्ली हकदार में ही हूँ ।आप सभी पढ़ें लिखें हें तो भला ये बाजी मेरे हाथ क्यों न लगे । फिर भला मुफ्त का चन्दन घिस मेरे भाई में क्यों न ल्गांव।
स्तिथि बड़ी विचित्र थी । एक गाँव वाला शहरी से अड़ गया की अल्पसंख्यक का तमगा उसे ही मिलना चाहिय ।
भेंश वाला , बकरी वाला , गाय वाला मुर्गी वाला अपनी ही दलीलें दे रहा था । काला गोरे पर ऑंखें तरेरने लगा , भला वह क्यों इस केटेगिरी का हकदार नहीं हो सकता ।
अपील दलील का दौर चला , सब्जी वाला फल वाले पर कपडे वाला रेडीमेड वाले पर हावी हो इस लुभावने लड्डू को लपकने को बेकरार था ।उधर मूंछ वाला अपनी मूंछों पर ताव दे अपने बालों को सहला रहा था ।पलड़ा सभी काभारी था । न जाने ऊंट किस करवट बेठ जाए । सभी इसी उधेड़ बुन में मगह्पच्ची के रहे थे । निर्णय हो तो केसे हो । कोन अल्पसंख्यक कोन बहुसंख्यक इसका फेशला करना बढ़ी टेढ़ी खीर थी ।सभी एक दुसरे का मुंह ताअक रहे थे । कोई भी फेशला करना टेढ़ी खीर थी । एक तरफ कुवा तो दूसरी तरफ खाई । किसी भी निर्णय से तिल का ताड़ , बात का बतंगड़ बनना लाजमी था । देने के लेने पड़ने का पुरा अंदेशा था। सभी बातें एक गंजा कान लगा कर सुन रहा था , उससे रहा न गया । सञ्चालन क्रता की इजाजत ले वह भी बिच में कूद पड़ा । लगता था मरे शेर की मुछ हर कोई उखाड़ना चाहता था । क्या करे क्या न कर स्थिति सांप व छुछुंदर वाली थी खाए तो जान जाए न खाए तो नामर्द कहलाये । मशला कश्मीर , राम मंदिर की तरह पेचीदा हो चला था जिसे कोई भी नहीं छओड़ना नहीं चाहता था । सभी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे । पूरा का पूरा विषय बदल चूका था । मुफ्त की मुर्गी भला कोअन छोड़ना चाहेगा ।
काफी माथा पची के बाद भी नतीजा जीरो । रिजल्ट वाही ढहाक के तिन पात । तभी पार्क में नेताजी नजर आये ।
सभी की उम्मीद उन्ही पर जा टिकी । नेताजी जी ने माजरा समझ पूछा की किसके कितने वोते हें तथा कोन वोटो को वोट बैंक में तब्दील कर सकता हें । नेताजी जी वोटो का गुना जमा कर एक उनमें के एक को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया । सभी नेताजी के अहसान मंद थे की आपने केसे समस्या का चुटकी बजा हल कर दिया । दूसरी तरफ हम वाद विवाद में पद अपना समय खराब कर रहे थे ।
नेता जी मन ही मन ऐसा महसूस कर रहे थे जेसे अन्धें के हाथों बटेर लग गयी हो । अँधा मरे या जवान हत्या से काम । हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा । आखिर सत्ता की कुनजी जो हाथ आ लगी थी ।
स्तिथि बड़ी विचित्र थी । एक गाँव वाला शहरी से अड़ गया की अल्पसंख्यक का तमगा उसे ही मिलना चाहिय ।
भेंश वाला , बकरी वाला , गाय वाला मुर्गी वाला अपनी ही दलीलें दे रहा था । काला गोरे पर ऑंखें तरेरने लगा , भला वह क्यों इस केटेगिरी का हकदार नहीं हो सकता ।
अपील दलील का दौर चला , सब्जी वाला फल वाले पर कपडे वाला रेडीमेड वाले पर हावी हो इस लुभावने लड्डू को लपकने को बेकरार था ।उधर मूंछ वाला अपनी मूंछों पर ताव दे अपने बालों को सहला रहा था ।पलड़ा सभी काभारी था । न जाने ऊंट किस करवट बेठ जाए । सभी इसी उधेड़ बुन में मगह्पच्ची के रहे थे । निर्णय हो तो केसे हो । कोन अल्पसंख्यक कोन बहुसंख्यक इसका फेशला करना बढ़ी टेढ़ी खीर थी ।सभी एक दुसरे का मुंह ताअक रहे थे । कोई भी फेशला करना टेढ़ी खीर थी । एक तरफ कुवा तो दूसरी तरफ खाई । किसी भी निर्णय से तिल का ताड़ , बात का बतंगड़ बनना लाजमी था । देने के लेने पड़ने का पुरा अंदेशा था। सभी बातें एक गंजा कान लगा कर सुन रहा था , उससे रहा न गया । सञ्चालन क्रता की इजाजत ले वह भी बिच में कूद पड़ा । लगता था मरे शेर की मुछ हर कोई उखाड़ना चाहता था । क्या करे क्या न कर स्थिति सांप व छुछुंदर वाली थी खाए तो जान जाए न खाए तो नामर्द कहलाये । मशला कश्मीर , राम मंदिर की तरह पेचीदा हो चला था जिसे कोई भी नहीं छओड़ना नहीं चाहता था । सभी अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे । पूरा का पूरा विषय बदल चूका था । मुफ्त की मुर्गी भला कोअन छोड़ना चाहेगा ।
काफी माथा पची के बाद भी नतीजा जीरो । रिजल्ट वाही ढहाक के तिन पात । तभी पार्क में नेताजी नजर आये ।
सभी की उम्मीद उन्ही पर जा टिकी । नेताजी जी ने माजरा समझ पूछा की किसके कितने वोते हें तथा कोन वोटो को वोट बैंक में तब्दील कर सकता हें । नेताजी जी वोटो का गुना जमा कर एक उनमें के एक को अल्पसंख्यक घोषित कर दिया । सभी नेताजी के अहसान मंद थे की आपने केसे समस्या का चुटकी बजा हल कर दिया । दूसरी तरफ हम वाद विवाद में पद अपना समय खराब कर रहे थे ।
नेता जी मन ही मन ऐसा महसूस कर रहे थे जेसे अन्धें के हाथों बटेर लग गयी हो । अँधा मरे या जवान हत्या से काम । हिंग लगे न फिटकरी रंग चोखा । आखिर सत्ता की कुनजी जो हाथ आ लगी थी ।
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