एक सार्वभौमिक सत्य (Universal Truth) है कि सूर्य हमेशा ही पूर्व से ही उगता है। परन्तु फ़िजिक्स-सांइस अथवा मैथ्स की तरह सामाजिक-राजनैतिक नियम यूनिवर्सल न होकर समय स्थान के अनुसार बदलते रहें के कारण परिवर्तनीय श्रेणी में आते है।
सत्ता सुख के लिए 1947 में नेताओं ने देश को धार्मिक आधार पर विभाजित कर दिया। आजादी के बाद भी हमेशा सत्ता में बने रहने के लिए नेता लोग तरह तरह की तिकड़म लगाते रहते है। शब्दों का एक्स
जनसंख्या अनुपात ( डेमोग्राफी) भी अटल सत्य नहीं है। जैसा कि हिन्दुस्तान में आज नेता मान रहें हैँ।
सत्ता सुख के लिए 1947 में नेताओं ने देश को धार्मिक आधार पर विभाजित कर दिया। आजादी के बाद भी हमेशा सत्ता में बने रहने के लिए नेता लोग तरह तरह की तिकड़म लगाते रहते है। शब्दों का एक्स
जनसंख्या अनुपात ( डेमोग्राफी) भी अटल सत्य नहीं है। जैसा कि हिन्दुस्तान में आज नेता मान रहें हैँ।
भारत की जनसख्या अनुपात में निरंतर परिवर्तन हो रहा है। देश-काल अनुसार नियम बदलते रहते
है । समय के अनुसार बदलते नियम ही देश व् समाज को उन्नतिशील बनाते है।
“डेमोग्राफी” अर्थात जनसंख्या अनुपात भी कुछ ऐसा ही है। अफगानिस्तान , पकिस्तान , बांग्लादेश की “डेमोग्राफी” ( जनसख्या अनुपात ) बदलने का परिणाम यह हुआ कि आज यह देश हिन्दू बहुल से मुस्लिम बहुल हो गए। जैसा कि ऐतिहासिक सत्य है कि हिन्दुस्तान का बंटवारा हिन्दू -मुस्लिम धर्म के आधार पर हुआ।
1947 की जनसांख्यिकी अर्थात जनसंख्या अनुपात (“डेमोग्राफी”-Demography) के आधार पर आजादी के समय हिन्दुस्तान में हिन्दुओं को बहुसंख्यक व् मुस्लिम को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया
गया।
वर्तमान समय में केंद्र ने छह धार्मिक अनुयाइयों- मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख ,जैन
व् पारसी शामिल हैं, को राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक घोषित कर रखा है
व् सरकार ने अल्पसंख्यक को सामान्य नागरिकों के समानधिकार के अतिरिक्त
विभिन्न प्रकार के विशेषाधिकार व् लाभ दे रखे है।
70 वर्ष बाद आज हिन्दुस्तान के जनसंख्या अनुपात में (“डेमोग्राफी”) बड़ा परिवर्तन आया है । आंकड़ों के मायाजाल में जहां एक और राष्टीय स्तर
पर हिन्दू बहुसंख्यक है, वही राज्य स्तर पर 9 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक
है। परन्तु राज्य स्तर पर अल्पसंख्यक का नियम लागू न होने से,
राज्य स्तर के हिन्दू को अल्पसंख्यक के विशेष अधिकार से वंचित कर रखा
है। व् उनका कुछ राज्यों से पलायन भी हुआ है।
हिन्दू की धार्मिक
आजादी , जान-माल की सुरक्षा को नजरअंदाज सा किया जा रहा है। इसी कारण राज्य
स्तर पर पलायन की समस्या है। यदि जिला स्तर पर देखे तो कथित बहुसंख्यक
की स्तिथी और भी भयावह है।
इन्ही सभी
कारणों के दृष्टिगत रख केंद्र सरकार को 1947 के अल्पसंख्यक के पैमाने को बदल , अप्ल्संख्यक को परिभाषित करना चाहिए। केंद्र को राज्य व् जिला स्तर पर वर्तमान जनसंख्या अनुपात (डेमोग्राफी) के आधार पर
अल्प्संख्यकता का पैमाना बनानां चाहिए। ताकि सभी भारतीय नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के राज्य व्
जिला स्तर पर धार्मिक व् व्यक्तिगत सुरक्षा प्रदान की जा सके।
यदि
आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में बहुसंख्यक का राज्य , जिला स्तर
पर उत्पीड़न व् पलायन बहुत मात्रा में हुआ है। जम्मू व् काश्मीर ,
पंजाब, आसाम, बंगाल , उत्तरप्रदेश जैसे राज्य इसके चंद उदाहरण
है।
दस
वर्ष में एक बार होने वाली जनगणना में आकड़ों के लिए हिन्दू बहुसख्यक की सभी
जातियों को मिलाकर हिन्दू धर्म में शामिल कर लिया जाता है, परन्तु चुनाव के
समय सत्ता के लिए बहुसंब्ख्यक को जातियों में बाँट ( दलित , जाट राजपूत
, ब्राह्मण आदि ) अप्ल्संख्यक बना दिया जाता है। इसका सीधा-सीधा
नुक्सान बहुसंख्यक को उठाना पड़ रहा है। उसकी सुरक्षा, धार्मिक आजादी को हानि
पहुंचाई जाती है।हिन्दूओं का पलायन हो रहा है। हिन्दू धर्म में वीरता, शौर्य व्
पवित्रता के प्रतीक भगवा रंग को आतंक से जोड़ बदनाम करने की कोशिश
की जाती है।
आज देश व् Tax Payers (टेक्स पेयर्स) के पैसे
से अवैध घुसपैठिए इंडिया को फ्री पोर्ट की तरह समझ यहां रहकर अल्पसंख्यक का दर्जे ले, विशेष
सुविधाएँ भोग रहे है। वहीं सामान्य अधिकार प्राप्त राष्ट्रीय स्तर पर बहुसंख्यक
अपने अधिकारों के लिए गिड़गिड़ाता सा नजर आ रहा है।
देश
की सरकार को इन बिन्दूओ पर भी विचार करना चाहिए। तभी सबका साथ व्
सबका विकास संभव है। हर भारतीय को प्रण लेना होगा कि
उसे मिलकर हिंदुस्तान को हिन्दुस्तानियों का देश बनानां है न
कि अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक का। जैसा कि
सत्ता के लिए नेता कर रहें है। इसी में हम सबकी भलाई है।
जय हिन्द , जय भारत !
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