8.12.24

Twins नामकरण

  बिटिया की चिंता सभी माता-पिता को होती है। आजकल परिवार में बच्चों की संख्या एक या दो तक ही सिमट जाने के कारण तो बिटिया का महत्व और भी बढ़ जाता है, उसकी बालपन की अटखेलिया एक सुखद की अनुभूति देती है। 


बात वर्ष 2015 की है! जब परिवार में नातिन ट्विन्स का सुखद आगमन हुआ।  आस-पड़ोस, रिस्तेदार सभी ट्विन्स की  एक जैसी शक्ल देख चकित होते व् बड़े व् छोटे ट्विन्स में भेद कर पाने में असमर्थ रहते।   ट्विन्स अभी कुछ ही दिन के हुए थे तो उनके  नामकरण को लेकर माथापच्ची शुरू हो गई।  जबकि पहले जमाने में नाम को लेकर इतना झमेला न था।
  बच्चे का नामकरण मिठाई-फल-फूल या भगवानों के नाम पर रख कर काम चला लिया जाता  था।  इमरती, राबड़ी, चमेली ,गुलाबोअनारकली, शिवापार्वतीराधाकन्हैया  आदि-आदि। ये कुछ  इसी तरह के कुछ  उदाहरण है। हाँ यह बात जरूर है कि कुछ धार्मिक प्रवर्ती वाले लोग पंडित जी से जन्मपत्री में  नामकरण करवा लेते है ।  
 परन्तु नेट-गूगल की  दुनिया ने पूरी दुनिया ग्लोबल कर दिया।  तकनीक ने भाषा-धर्म की दीवार को मिटा दिया ।  
इस पोस्ट में भी इसी तकनीक का  कमाल है, ब्लॉग लिखने में रोमन की बोर्ड से,  रोमन में हिंदी  लिखा जा रहा है। 
खैर  जो भी हो हम मुख्य मुद्दे पर आते है। इस आपाधापी के युग में बच्चों का नाम यूनिक हो, इसी को लेकर आज  नामकरण में राशिअक्षर , स्पेलिंग के साथ-साथ एक अलग से पहचान वाला नाम रखने की परम्परा शुरू हो गई है। 
 इसी भाव से उन दिनों  ट्विन्स के नामकरण को लेकर भी परिवार में यही  रस्साकसी चल रही थी । कोई परिवार में अक्षर पर ध्यान देता तो कोई राशि पर।  
सभी पारिवारिक लोगों से ट्विन्स के नामकरण के सुझाव मांगे गए। यद्यपि ट्विन्स नामकरण के चुनाव की  वीटो पॉवर माताश्री के पास ही थी ।  
 परिवार के सदस्यों की भूमिका  मार्गदर्शक मंडल की तरह थी। UNO में तो  वीटो पॉवर पांच देशों है परन्तु यहाँ  माताश्री का एकाधिकार  था।  
  नामों को  गूगल पर सर्च किया जाने लगा। माताश्री दवरा  नाम में कोई न कोई  कमी या किन्तु-परन्तु कर , रिजेक्ट कर दिया जाता। उन दिनों नामों की इसी उधेड़बुन में लगभग तीन-चार माह से ज्यादा का समय बीत गया। 
अब समस्या यह उत्पन्न हुई हमशक़्ल ट्विन्स को क्या कह कर पुकारा जाए। घर के तजुर्बेकार सदस्यों ने एक काम चलाऊ कार्यवाहक सरकार की तरह ट्विन्स के पैदा होने के समय के अंतर को  पैमाना मान -छोटे-बड़े को आधार बनाकर निक नेम दे डाले।  
पहला नामकरण हुआ -छोटे बेबी का ! जो बड़े बेबी से केवल एक मिनट छोटा था– नाम मिला  -छुट्टन !  बड़े बेबी को  भी परी  नाम से पुकारा जाने लगा । मै आज यहाँ  यह स्पष्ट करता चलूँ ,  कि  इन दिनों छोटे बेबी ने  "छुट्टन" नाम पर  एतराज जता यह  बोल दिया है- " नानू  मुझे छुट्टन ना कहा करों !  
 
खैर अब मूल बात पर  आते है।  ट्विन्स के नामकरण को लेकर काफी माथापच्ची हो चुकी थी, अंत में माताश्री को  समझाया गया कि  दिल्ली नगर निगम में एक तय समय सीमा के भीतर ही बिना नाम वाले जन्म प्रमाण पत्र में  एप्लिकेशन /एफिडेविट देकर  नाम दर्ज कराया जा सकता है। अतः अब और देरी  नहीं करनी चाहिए।  
 तय समय बीत जाने पर  बिना नाम वाले जन्म प्रमाण पत्र में नाम जुड़वाने के लिए आवेदन करना करना में बड़ा ही झंझंट होगा। 
आखिरकार नामों की अंतहीन रेस में हार मानमाताश्री ने ट्विन्स के नामों की अनमने मन से हाँ में  मोहर लगा दी । 
नामों की स्वीकृति देते समय माता श्री की हालत ठीक वैसे थी जैसी कोई फलों टोकरे में रखे  असंख्य फलों को देखकर कभी इस फल का चुनाव करता है तो कभी उसे फल का।   

 फल चुनने वाला हर बार पहला  फल चुनने के बाद दूसरे फल की ओर इस उम्मीद से लपकता है क़ि शायद दूसरा उससे कहीं ज्यादा अच्छा हो । 
 खैर राम-राम श्याम-श्याम करते , अंततः ट्विन्स का नामों को  सदा के लिए अंतिम रूप दे  निगम व अन्य सरकारी रिकॉर्ड दर्ज करा दिया गया।   नाम वाला बर्थ सर्टिफिकेट ले माताश्री ने उसे  को चूम लिया व  धीरे से ट्विन्स को उन्ही नामों से ऐसे पुकारा जैसे उन्हें जीवन भर के लिए नामों की एक नई पहचान मिल  गयी हो।  
  मां  की खुशी देख लगा मानों ट्विन्स ने भी मुस्कराते हुए नामों की  मौन स्वीकृति दे दी हो। 

जय हिन्द! जय भारत !


31.10.24

आयुष्मान वय वन्दना कार्ड -एक दीवाली गिफ्ट

आयुष्मान वय वन्दना कार्ड-एक दीवाली गिफ्ट

 घर के  बुजुर्गों की  चिंता सभी को  रहती है,  हम सभी अपनी-अपनी आर्थिक  सामर्थ्य-क्षमता के अनुसार उनकी सेहत का ध्यान रखते है।  बुजुर्गों के स्वास्थय की परिवार की  चिंता को केंद्र की मोदी सरकार ने  29 Oct. 24 को आयुष्मान वय वन्दना कार्ड  लागू कर ,  काफी हद तक दूर कर दिया। 

जिसके  अंतर्गत 5 लाख तक निशुल्क इलाज  AB  PM-JAY  के तहत सूचीबद्ध किसी  भी अस्पताल में  पूरे  भारत में (दिल्ली व्  पश्चिम बंगाल को छोड़कर )  इलाज कराया जा सकता है।  इस योजना का लाभ सभी  जाति-धर्म व्  आय के बुजुर्ग उठा सकते है।   

बस इसके लिए केवल एक अदद आधार कार्ड होना चाहिए, जिसमें आयु-वर्ष  व मोबाइल नंबर  जुड़ा हो। 

 इस कार्ड को  स्मार्ट फोन  से भी  बनाया जा सकता है   इसके लिए  प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना-PM -JAY - आयुमान ऐप  डाउनलोड करना होगा , जिसकी सहायता से इसे बनाया व् डाउनलोड किया जा सकता है । अथवा इसे जनसेवा केंद्र की सहायता से भी इस कार्ड को बनाया जा सकता है। 

सचमुच में यह योजना केंद्र की आम लोगों  के जनजीवन से जुडी उन सभी  योजनाओं  की तरह  जैसे  हर घर जल-नल,  खाने पकाने की गैस,  टॉयलेट, पक्के  मकान, किसान सम्मान निधि, गांव में घर  स्वामित्व योजना, सूर्य घर योजना, आयुष्मान कार्ड आदि-आदि  की तरह,  आम  लोगों के जीवन स्तर  को ऊंचा उठाने में एक  मील का पत्थर साबित होगी।

मैंने  भी आज ही परिवार की बुजुर्ग  माता श्री  का आयुष्मान वय वन्दना कार्ड  अपने मोबाइल से बनाकर डाउनलोड किया है। जो  किसी दीवाली गिफ्ट से कम नहीं।   

इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार सचमुच में बधाई की पात्र है।  सरकार को  इस शुभ कार्य के लिए  दीवाली की शुभ कामना  व्  सरकार व् उसका संचालन करने वालों की  लम्बी उम्र की लम्बी हो ,  ऐसी कामना ! हम सभी को दीवाली  शुभ हो !

 

जय हिन्द जय भारत 

5.9.24

दिल्ली -मेरठ-मुजफ्फरनगर रेल शटल

दिल्ली -मेरठ-मुजफ्फरनगर रेल शटल - इस रेल मार्ग पर  रेल यात्रियों की  तेजी से बढ़ोतरी हुई है , वर्तमान में चलने वाली सभी ट्रेनों में मारी-मारी की स्तिथि है। यात्रियों का ट्रेनों में  खड़े होकर भी यात्रा  करना किसी सजा से कम नहीं ।  

 जैसा कि  विदित ही है, मेरठ-मुजफ्फरनगर  राष्टीय राजधानी क्षेत्र में आते है, अतः इस रेल मार्ग पर भी  “ फरीदाबाद-गाजियाबाद-अलीगढ़-दनकौर-शामली की तरह  लोकल  ट्रेन्स   MEMU / EMU  को  चलाये  जाने की आवश्यकता है। 

वर्तमान में  फरीदाबाद  -गजियाबाद्  वाली   लोकल ट्रेनों को मेरठ-मुजफ्फरनगर तक विस्तार देकर  यात्रियों को राहत  दी जा सकती है।  

यात्रियों के  लिए  इससे बड़ा मजाक क्या हो सकता है  कि दिल्ली  से मेरठ-मुज़फ्फरनगर  के लिए सुबह के समय  पहली अनारक्षित  सुपर  फ़ास्ट ट्रेन संख्या 20411  है जो 9.40 A.M  पर दिल्ली से चलती है  , इससे पहले  इस मार्ग के यात्रियों के लिए कोई  अनारक्षित  ट्रेन नहीं है।कोरोना से पूर्व  दिल्ली -कालका  पैसेंजर ट्रेन चलती थी जिसका संचालन  अभी तक नहीं हो पाया है। 

वर्तमान में  रेल यात्रियों की संख्या को देखते हुए ,   दिल्ली से  वाया  दिल्ली-शाहदरा  सुबह 5 से 6 के बीच एक एक्सप्रेस ट्रेन  मेरठ-मुजफ्फरनगर के बीच  चलाई जानी चाहिए।   

वर्तमान में 19031 जो दिल्ली से 5.05 am  पर चलती है , में जनरल कोच की संख्या कम होने के कारण  यात्री या तो स्टेशन पर खड़े रह जाते है या फिर मजबूरन  रिज़र्व कोच में जुर्माना या कुछ ले देकर यात्रा करते है 

इसी तरह शाम के समय लगभग  6 बजे  मुजफ़्फ़रनगर से दिल्ली के लिए ट्रेन  की आवश्यकता है।  गाड़ी संख्या 19032 जो यहां  6.30 pm  पर आती है  सभी ट्रेन  यात्री  भीड़ के कारण  चढ़ नहीं पाते।  

यूं तो रेल मदद के माध्यम से इस विषय को अनेकों  बार उठाया जा चुका है परन्तु हल अभी तक नहीं निकला है।  

आशा है रेल प्रशासन इस ब्लॉग व् रेल मदद के माध्यम से  उठाई जाने वाली समस्या पर अवश्य ही कुछ कदम उठएगा 

जय हिन्द! जय भारत !

 

  

 

21.8.24

जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन

जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन   

 

 सैल्मन मछली की तरह  हर मानव की  इच्छा होती है कि  जीवन के चार चरणों में से बाकी बचे चौथे चरण  के  कुछ पल- समय अपने उस  पैतृक स्थान पर  गुजारे जहां  उसके  बचपन की यादें जुडी है. जब लोग इस पर अमल करते है तो इसी को जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन कहा जा सकता है।    भारतवर्ष में सैल्मन मछली  के स्वभाव वाले लोगों की कोई कमी नहीं है।  लोग काम काज से फुर्सत पाकर जीवन के पड़ाव  के चौथे चरण को पैतृक स्थान पर गुजारना पसंद करते है।  जो रिवर्स पलायन का ही एक रूप है। यह रिवर्स पलायन उस राज्य में,  जहां ये लोग जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन  चाहते है , किसी एक वरदान से कम नहीं ।

  यहां यह लोग कैपिटल लाते है मकान , जमीन , उद्योग आदि में पैसा लगाते है  जिससे राज्य की आय होती है  रोजगार के अवसर पैदा होते है। इस तरह के लोग  नयी व् पुरानी  पीढ़ी के बीच कड़ी का काम करते है। जो समाज , देश को एक दूसरे से जोड़ने में हितकर है । यह लोग अपने गांव-देहात  आकर अपनी पुस्तैनी खेती बॉडी के काम में जुड़ जाते है। कुछ सामाजिक कार्य करते है। शायद यही कारण है  इन लोगों को ओल्ड होम जैसे सेलटरों की जरूरत ही नहीं पड़ती। और तनाव रहित स्वस्थ जिंदगी  मजे से गुजारते है।  

यहां रहकर यह वर्ग पैतृक जमीन से परिवार की नई पीढ़ी को भी जोड़ देते है।  जिन्हें यह स्थान  शहर से दूर हवा पानी चेंज करने के साथ , किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं लगता। जो उनकी सेहत व् तनाव  दूर करने में सहायक होता है ।  

खेल-खेल में बच्चे पूर्वजों की  धरोहर , मिट्टी में फ़ैली बासमती सुगंध  से भी जुड़ जाते है। यही रिवर्स पलायन करने वाले लोग नई पीढ़ी में गांव शहर की खाई को पाटता  है ,  गावं से जोड़ता है।    मजे की बात यह भी है कि  ऐसा करने से इन स्थानों  से नई पीढ़ी का जुड़ाव सदा -सदा के लिए बना रहता है।

निश्चित ही  इसका श्रेय   जीवन के  चौथे चरण में  रिवर्स पलायन करने वाले लोगों को दिया जाना  चाहिए ,  जो  ऐसा कर परिवार की जड़ों को मजबूत करते है ,  देश की एकता अखंडता में एक महत्वपूर्ण  योगदान देते है । आइये रिवर्स पलायन को एक एडवेंचर के रूप में लें। 

जय हिन्द , जय भारत      

 


24.7.24

दिल्ली-रुड़की-लक्सर इंटरसिटी ट्रेन


दिल्ली-रुड़की-लक्सर इंटरसिटी ट्रेन  

 रुड़की-लक्सर ( उत्तराखंड ) हरिद्वार जिले के अंतर्गत आता है। वर्तमान में इस क्षेत्र में काफी औद्योगिक इकाइयां है जो देश में आर्थिक योगदान के साथ साथ लोगों को रोजगार देने का कार्य कर रही है। यहां स्थापित औद्योगिक इकाइयों के अधिकतर मुख्य कार्यालय  दिल्ली या उसके पास स्तिथ है।  

इसी लिए दिल्ली से काफी संख्या में रेल यात्री प्रतिदिन सफर करते है।  वर्तमान में  इस रेल खंड पर दिल्ली से कोई इंटरसिटी नहीं है।    

क्षेत्र के  विकास व् इस क्षेत्र की रेल मार्ग से बेहतर कनेक्टिविटी के लिए उत्तर रेलवे द्वारा  दिल्ली-रुड़की-लक्सर ( वाया दिल्ली-शाहदरा-मेरठ-मुज़फ्फरनगर-देवबंद ) एक  इंटरसिटी  ट्रेन चलाये जाने की आवश्यकता है।    

 

19.7.24

खाद्य पदार्थ विक्रेताओं का शॉप पर एक्छिक रूप से नाम का डिस्प्ले बोर्ड

प्रशासन दवरा  कावड़ मार्ग पर  खाद्य  पदार्थ  विक्रेताओं  को  दुकान  के बाहर  व्यापारिक प्रतिष्ठान  के खड्या नाम  के साथ साथ  , दुकान के स्वामी का नाम  डिस्प्ले  बोर्ड  का ऐच्छिक उल्लेख  करना  की सलाह दी गयी है।  ऐसा इस लिए किया गया  ताकि कावड़ की पवित्र  यात्रा के दौरान  तीर्थ  यात्री  उस  स्थान की  शुद्धता  व् स्वच्छता का पहली नजर में ही अनुमान लगा सके।  व्  किसी प्रकार के झगड़े की आशंका  न हो। 
 प्रशाशन की इस  सलाह से  भला  किसे  को क्या आपत्ति  हो सकती है ?  एक शुद्ध शाकाहारी  सनातनी -हिन्दू ,  जैन आदि  उपभोगता को   खाद्य पदार्थ खरीदते  समय यह अधिकार है कि  वो  जिस खाद्य पदार्थ   को खरीद  कर खा रहा है , उसमें शुद्धता का ध्यान  रखा  गया है या  नहीं। ऐसा  फ़ूड सिक्योरिटी  एक्ट 2006  जो यूं पी  ए  सरकार के समय पास हुआ व् वर्ष 2011  में लागू किया गया , इसके एक्ट के अंतर्गत भी इसी तरह का  प्रावधान किया गया है।  भला इस आदेश में  संविधान के उलघ्घन की बात  कहाँ से आ गई।  हाँ  यह बात अवशय है कि  खाद्य  सामग्री विक्रेता इस क़ानून का अवशय उलघ्घन कर रहा है। 
  वैसे भी  शाकाहारी  लोगों के लिए खाने वाली डिब्बा बंद  वस्तुओं पर  ग्रीन  मार्क/ चिन्ह  होता  है जो इस  बात का सूचक है  की यह खाद्य  पदार्थ  शाकाहारी है।  
 आखिर विपक्षः के  कुछ नेताओं को  स्वेच्छिक  रूप से  खाद्य  पदार्थ  विक्रेताओं  को दूकान पर व्यापरिक नाम के साथ  स्वामी का  नाम प्रदर्शित करने  के आदेश पर पर इतनी आपत्ति क्यों ? 
आखिर उपभोगता  व्  तीर्थ  यात्रियों  को किसी    धर्म की तुष्टिकरण के लिए उसके मूल अधिकारों व उपरोक्त कानूनी अधिकारों से कैसे  वंचित  किया  जा सकता है।   
 उपरोक्त  तथ्यों  को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कावड़ के समय दूकान के व्यापारिक  नाम के अतिरिक्त  दुकान  स्वामी का  नाम का  एक्छिक रूप से  डिस्प्ले  बोर्ड पर  प्रदर्शित करवाने का  निर्णय  प्रशासन द्वारा लिया गया  एक  सही व् , सराहनीय  कदम है। जागो  ग्राहक के अंतर्गत यह  उठाया गया एक बुद्धिमता पूर्ण  
कदम है। 
शाकाहारी लोगों  व्के तीर्थ यात्रियों की शद्धता  व्  पवित्रता के  अधिकारो की रक्षा के लिए इस तरह का आदेश कावड़ मार्ग पर कावड़ के  समय ही नहीं वरन  पूरे  वर्ष  हर जगह  भारत में लागू होना  चाहिए।   किस मत या धर्म  विशेष के नाम पर कुछ नेताओं  कीआपत्ति का कोई अर्थ नहीं।  उपभोत्ता  व् तीर्थ यात्रियों का  अधिकार सर्वोपरी है। छल कपट से खाद्य वस्तु बेचना  सरासर  फ़ूड सेफ्टी क़ानून की श्रेणी  में आता है।  प्रशासन उत्तरप्रदेश व् उत्तराखंड प्रशासन दवरा  यह उठाया गया कदम सोलह  आने  सही कदम है। 

14.7.24

दिल्ली -मेरठ रैपिड मेट्रो हरिद्वार तक विस्तार

13 जिलों, 2  मंडलों (गढ़वाल व् कुमायूं)  व्   विशेष दर्जा प्राप्त उत्तराखंड जो जिसकी  सीमा  देश के अन्यों राज्यों  हिमाचल व्के उत्तरप्रदेश के  अतरिक्त चीन/तिब्बत  , नेपाल से मिलती है। इस राज्य  का निर्माण ,नवम्बर  2000 को हुआ।  उत्तराखंड  राज्य में  हरिद्वार  तीर्थ स्थल का एक महत्वपूर्ण  स्थान रखता   है।

   यह राज्य हरिद्वार तीर्थ स्थल के अतिरक्त  महत्त्वपूर्ण   इंडस्ट्रियल  एरिया  जैसे सिडकुल  हरिद्वारभगवानपुर  इंडस्ट्रियल  एरियालिबबरेड़ी  इंडस्ट्रियल  एरिया , लक्सर / खानपुर   भी रखता है जो राज्य  व्  देश की   अर्थव्यवस्थारोजगार  में एक महत्वपूर्ण  योगदान देता है।  

यह हर्ष का विषय है जो सत्य  भी है कि देवभूमि  उत्तराखंड के निमार्ण के बाद से हरिद्वार आने वाले  तीर्थ यात्रियों की संख्या में तीव्र   वर्द्धि  हुई है जो राज्य के पर्यटन उद्योग व् रोजगार के लिए एक शुभ संकेत है। 

प्रत्येक  शनिवार व्  रविवार को सड़कों पर यातायात  से इसका अनुमान सहज  ही लगाया जा सकता है।  इन दिनों  सड़क पर ट्रेफिक  बढ़ जाता है व्  जाम की स्तिथि पैदा हो जाती है।  ट्रेनों में   हरिद्वार तीर्थ  यात्रियों की असमान्य भीड़ है।  नेशनल हाइवे  मंगलोर कस्बे में  शनिवार व् रविवार  को  हाइवे पर जाम लगना  आम बात  है। यहां बाई पास या फ्लाईओवर की आवश्यकता है।  

 

 हरिद्वार में वर्ष भर तीर्थ यात्रियों  का  भारी  संख्या में आवगमन  होता है ,   कुम्भ  मेलावार्षिक कावड़  यात्रा  आदि के  समय  तीर्थ यात्रियों  की अभूतपूर्व रूप से  संख्या बढ़ जाती  है तीर्थ  यात्रियों को आवागमन में  काफी असुविधा का सामना करना पड़ता  है।  एक  तरह यह तीर्थ व तीर्थ यात्री हरिद्वार देश को  जोड़ने  का काम करता है। यह आवागमन  अखंडता के लिए एक  अभूतपूर्व कार्य करता है।   

वार्षिक कावड़ यात्रा के समय प्रशासन  किसी  अप्रिय घटना के  डर  से  यातायात को कुछ समय के लिए  नियंत्रित करता है  , वार्षिक कावड़ यात्रा प्रत्येक वर्ष जुलाई में होती है।  वर्ष 2024  पवित्र कावड़ यात्रा व् ट्रेफिक को नियंत्रित करने का  समय 22  जुलाई से 2 अगस्त की बीच है। 

 निश्चित रूप से इससे उद्योग धंधोसामान्य यात्रियों के आवागमन पर थोड़ा बहुत  विपरीत प्रभाव पड़  सकता है। परन्तु देश व्  असंख्य सनातनी तीर्थ यात्रियों व् उनके साथ जुड़े रोजगार व् धार्मिक  भावना को देखते हुए, यह कुछ भी नहीं है 

 हरिद्वार में भारी  तीर्थ यात्रियों की संख्या को देखते हुए उद्योग धंधो अन्य यात्रियों के आवागमन सुगम  बनाने के लिए व  कुम्भ मेले के समय दिल्ली, गाजियाबाद  मेरठमुजफ्फरनगर  , रुड़की आदि शहरों के इंफ्रास्ट्रक्टर का उचित  भरपूर प्रयोग करने के लिए  दिल्ली -हरिद्वार तक एक समर्पित ( डेडिकेटेड ) ट्रेन  कॉरिडोर की  तीव्र आवश्यकता है, क्योंकि  इस समय तीर्थ यात्रियों की भीड़ को देखते हुए   रेल बस या अन्य यातायात के साधन कम पड़ते नजर आ रहें है।  

 

इसी बात को  दृटिगत  रखते हुए ,   केंद्र की मोदी  सरकार से ( जो अपने जनहित  व् दृढ निर्णय  लेने  की माहरत रखती है ) व् अभूतपूर्व रूप से केंद्र में नॉन कांग्रेस लगातार तीसरी बार आयी है 

 अनुरोध है कि जल्द ही  दिल्ली-मेरठ रेपिड मेट्रो कॉरिडोर को   मुजफ्फरनगर- रुड़की  होते हुए हरिद्वार तक विस्तार  देने  की  दिशा में विशेष कदम  उठाये।  

 

जय हिन्द ! जय भारत !

 

 

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