जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन
सैल्मन मछली की तरह हर मानव की इच्छा होती है कि जीवन के चार चरणों में से बाकी बचे चौथे
चरण के कुछ पल- समय अपने उस पैतृक स्थान पर गुजारे जहां उसके बचपन की यादें जुडी है. जब लोग इस पर अमल
करते है तो इसी को जीवन के चौथे
चरण में रिवर्स पलायन कहा जा सकता है। भारतवर्ष में सैल्मन मछली के स्वभाव वाले लोगों की कोई कमी नहीं है। लोग काम काज से फुर्सत पाकर जीवन के पड़ाव के चौथे चरण को पैतृक स्थान पर गुजारना पसंद करते है। जो रिवर्स पलायन का ही एक रूप है। यह रिवर्स
पलायन उस राज्य में, जहां ये लोग जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन चाहते है , किसी एक वरदान से कम नहीं ।
यहां यह लोग कैपिटल लाते है , मकान , जमीन , उद्योग आदि में पैसा लगाते है जिससे राज्य की आय होती है रोजगार के अवसर पैदा होते है। इस तरह के लोग नयी व् पुरानी पीढ़ी के बीच कड़ी का काम करते है। जो समाज , देश को एक दूसरे से जोड़ने में हितकर है । यह लोग अपने गांव-देहात आकर अपनी पुस्तैनी खेती बॉडी के काम में जुड़ जाते है। कुछ सामाजिक कार्य करते है। शायद यही कारण है इन लोगों को ओल्ड होम जैसे सेलटरों की जरूरत ही नहीं पड़ती। और तनाव रहित स्वस्थ जिंदगी मजे से गुजारते है।
यहां रहकर यह वर्ग पैतृक जमीन से , परिवार की नई पीढ़ी को भी जोड़ देते है। जिन्हें यह स्थान शहर से दूर हवा पानी चेंज करने के साथ , किसी पिकनिक स्पॉट से कम नहीं लगता। जो उनकी सेहत व् तनाव दूर करने में सहायक होता है ।
खेल-खेल में
बच्चे पूर्वजों की धरोहर , मिट्टी में फ़ैली बासमती सुगंध से भी जुड़ जाते है। यही रिवर्स पलायन करने वाले लोग नई पीढ़ी में गांव शहर की खाई को पाटता है , गावं से जोड़ता है। मजे की बात यह भी है कि ऐसा करने से इन स्थानों से नई पीढ़ी का जुड़ाव सदा -सदा के लिए बना
रहता है।
निश्चित ही इसका श्रेय जीवन के चौथे चरण में रिवर्स पलायन करने वाले लोगों को दिया जाना चाहिए , जो ऐसा कर परिवार की जड़ों को मजबूत करते है , देश की एकता अखंडता में एक महत्वपूर्ण योगदान देते है । आइये रिवर्स पलायन को एक एडवेंचर के रूप में लें।
जय हिन्द , जय भारत
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